वो ज़माने का ही हुआ,पर मेरा राज़दार न हुआ

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salil saroj

उसको तोहमतें ज़्यादा मिली,तारीफें बहुत कम
जो अच्छा तो बहुत हुआ पर खुद्दार न हुआ ।।2।।
सारी ज़िन्दगी खोल के रख दी उसके सामने
वो ज़माने का ही हुआ,पर मेरा राज़दार न हुआ ।।3।।
सबको भूख थी उस बच्ची के कच्चे जिस्म की
जब गुनाहों की जिरह हुई तो कोई दावेदार न हुआ ।।4।।
माँ-बाप ने नींदें बेचकर बच्चों के ख्वाब पाल दिए
पर आदतन बच्चा उनके अहसानों के कर्ज़दार न हुआ ।।5।।
#सलिल सरोज

परिचय

नई दिल्ली
शिक्षा: आरंभिक शिक्षा सैनिक स्कूल, तिलैया, कोडरमा,झारखंड से। जी.डी. कॉलेज,बेगूसराय, बिहार (इग्नू)से अंग्रेजी में बी.ए(2007),जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय , नई दिल्ली से रूसी भाषा में बी.ए(2011),  जीजस एन्ड मेरीकॉलेज,चाणक्यपुरी(इग्नू)से समाजशास्त्र में एम.ए(2015)।

प्रयास: Remember Complete Dictionary का सह-अनुवादन,Splendid World Infermatica Study का सह-सम्पादन, स्थानीय पत्रिका”कोशिश” का संपादन एवं प्रकाशन, “मित्र-मधुर”पत्रिका में कविताओं का चुनाव।सम्प्रति: सामाजिक मुद्दों पर स्वतंत्र विचार एवं ज्वलन्त विषयों पर पैनी नज़र। सोशल मीडिया पर साहित्यिक धरोहर को जीवित रखने की अनवरत कोशिश।

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