बूँद-बूँद में गुम सा है

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SUNITA RAVAT
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
एक अजनबी एहसास है
कुछ है नया, कुछ ख़ास है
कुसूर ये सारा मौसम का है
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
चलने दो मनमर्ज़ियाँ
होने दो गुस्ताखियाँ
फिर कहाँ ये फ़ुरसतें?
फिर कहाँ नज़दीकियां?
कह दो तुम भी कहीं लापता तो नहीं
दिल तुम्हारा भी कुछ चाहता तो नहीं
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
एक अजनबी एहसास है
कुछ है नया, कुछ ख़ास है
कुसूर ये सारा मौसम का है
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
सिर्फ़ एक मेरे सिवा
और कुछ ना देख तू
ख्वाहिशों के शहर में
एक मैं हूँ, एक तू
तुझको आना है तो
बनके तू सांस आ
ना रहे दूरियाँ
इस कदर पास आ
बूँद-बूँद में गुम सा है
ये सावन भी तो तुम सा है
बस ये इजाज़त दे मुझे
जी भर के मैं पी लूं तुझे
मैं प्यास हूँ, और तू
शबनम सा है
बूँद-बूँद में (बूँद-बूँद में) गुम सा है
ये सावन भी तो (ये सावन भी तो) तुम सा है….!!!
#सुनिता रावत
अजमेर
 
परिचय-
सुनिता रावत
अजमेर (राजस्थान)
व्याख्याता-समाजशास्त्र
उपाधि-स्नात्तकोक्तर -समाजशास्र,इतिहास,राजनीति-विज्ञान

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