पृथ्वी सेवा से मरहूम होते लोग

0 0
Read Time8 Minute, 9 Second

aashutosh kumar

प्रगति के अंधे दौर में थोडा सा वक्त हमारी घरती को भी चाहिये यही सोच सभी के दैनिक जीवन में आए और पर्यावरण के प्रति लोग जागरूक हों इसलिए पृथ्वी दिवस को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। विभिन्न सेमिनारो लेखों कविताओं के जरिए भी पर्यावरण के प्रति गहरी चिंता व्यक्त की जाती रही है।
पर्यावरणीय सुरक्षा उपाय को दर्शाने के लिये साथ ही पर्यावरण सुरक्षा के बारे में लोगों के बीच अधिक जागरुकता बढ़ाने में लगभग पाँच दशक के गहन परीक्षण और शोध के जरिये भी आज तक हमलोग उपाय ही ढूँढ रहे जबकि पर्यावरण सुरक्षा का हल ढूँढा जाना अति आवश्यक हो गया है।पानी का घटता लेयर, मानसून कम होना, असमय बारिस ओलावृष्टि सूखा, भूकंप बढती गर्मी आदि चिता का सबब बनता जा रहा है ।
धरती पर बढ़ती जीवन से उत्पन्न गंदगी, बढता रासायनिक उपयोग,सैन्य परीक्षण, गाडियो का धुआँ और लापरवाही का सिस्टम जैसे अनेक ऐसे कारण है जो धीरे-धीरे जीवन को मौत के करीब ले जाती हुई प्रतीत होती है।
इसलिये 22 अप्रैल को पूरे विश्व भर के लोगों के द्वारा एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में हर साल विश्व पृथ्वी पृथ्वी दिवस को मनाया जाता है। पहली बार, इसे 1970 में मनाया गया और उसके बाद से लगभग 192 देशों के द्वारा वैश्विक आधार पर सालाना इस दिन को मनाने की शुरुआत हुई।
दुनिया भर से मिली रिपोर्ट ने वायु प्रदूषण पर गहरी चिंता जाहिर की है इसके अनुसार हमलोग इतनी जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं  कि हमारी उम्र दिन प्रतिदिन कम हो रही है।प्रदूषण का स्तर प्रायः सभी शहरो में बढ़ रहा है शहरी क्षेत्रो मे गाडियो, ईंट भट्ठो, डीजल जेनरेटरों, से उत्सर्जित धुएँ सडक ची धूल तो ग्रामीण क्षेत्रो मे रसोई के ईंधन,वहीं गोबर की कम उपयोग होने से स्वच्छ हवा प्रायः दूर होती जा रही है।वायु प्रदूषण आने वाले समय में विपत्ति के समान सबका मुँह चिढाता नजर आ रहा है।
फेफड़ो से सम्बन्धित गंभीर रोग वायु प्रदूषण के कारण होते हैं।स्वास्थ्य एवं जनसंख्या मंत्रालय के अनुसार 1990 के दशक में वायु प्रदूषण विकलांगता के दसवां कारण होता था लेकिन 2019 तक यह दूसरा बडा कारण बन गया है।
बढती आबादी घटती जमीन और वनो का लगातार कटाव ने संतुलन बिगाड़ कर रख दिया है। विलासिता और विज्ञान पर निर्भरता ने लोगो को प्रकृति से दूर होने पर मजबूर कर दिया। बढता शहरीकरण और घटता गाँव ने लोगो को रोजी रोटी के लिए शहर में रहने पर मजबूर किया साथ ही प्रकृति सेवा से भी मरहूम किया है जिसका परिणाम अब स्पष्ट तौर पर दिख रहा है ।गंदगी का अम्बार लगे शहर के चौक चौराहे दूषित जल दूषित नदियाँ जो शहर की गंदगी नित्य निगल रही है आखिर कब तक स्वच्छ रह सकती धीरे-धीरे जहर बनने की राह पर अग्रसर है ।
आम तौर पर देखा गया है कि गाँव के लोग प्रकृति प्रेमी होते है वे गाँव में रहकर वृक्ष लगाते रहते हैं और सेवा भी करते हैं ताकि हर मौसम का फल उन्हें मिल सके लेकिन,शहर में वे ऐसा नही कर पाते न ही उनके पास जमीन उपलब्ध हो पाती है।उल्टा शहर आने पर गाँव में लगे वृक्ष भी सेवा अभाव के कारण सूख जाते है या खराब हो जाते हैं । प्रदूषण नियंत्रण के लिए पुनः गाँव का सदृढिकरण आवश्यक है शहर पर बढता बोझ को कम करना एक अच्छा विकल्प है लेकिन इसके लिए गाँव में ही रोजगार के विकल्प भी तलाशने होगे जो दूर-दूर तक नजर नही आती।अतःप्रकृति से मुफ्त में सभी को समान रूप से मिलने वाले जीवन के पाँच प्रमुख तत्व जिनके, किसी एक के बिना जीवन संभव नही है उनका संरक्षण करना और संरक्षण के प्रति जागरूक करना प्रत्येक नागरिक का पहला नैतिक कार्य व जिम्मेदारी होना चाहिए।

हमारी धरती
—————
स्वार्थो में जीवनचक्र
हर मानव में समाया
धरा की काया पर
देखो कितना मैल समाया।

विलासिता भरा युग
जबसे है आया
स्वच्छता जैसे
कालचक्र में समाया।

धरा की आभिलाषा
रखो मुझे सम्भाल
बोझ बढता ही जाता
रोज मिलता सिर्फ दिलासा।

मेरी शक्तियों को समझ
मेरे बिन जीवन कहाँ संभव
नित्य घटते वृक्ष रासायनिक उपयोग
और होते परीक्षण से मैं अब परेशान हूँ।

मैं धरा सभी का पालनहार
पर मुझे पालने वाले
मानव, मेरा करो उद्धार
साफ सफाई हरे पौधे
ही तो मेरे श्रृंगार।

धरा नही अस्तित्व हूँ तुम्हारी
जीवन के अंत काल में भी
विस्तर हूँ तुम्हारी
भूख की तपन को बूझाने वाली
माँ हूँ तुम्हारी।

जननी जन्मभूमि कर्म भूमि
धरा सबसे महान
मत करो अनादर कोई
रखो सदैव ध्यान।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

जटिल जीवन पथ

Sat Apr 20 , 2019
हर राम का जटिल जीवन पथ होगा जब पिता भार्या भक्त दशरथ होगा करके ज़ुल्म करता है वो इबादत कहो फिर कैसे पूर्ण मनोरथ होगा नींद आयेगी तुझे भी सुकून भरी जब तू भी पसीने से लथपथ होगा कृष्ण का भी रथ बढ़ रहा नहीं आगे सुदामा के रक्त से […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।