सियासी टकटकी का केंद्र बना बेगुसराएं।

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sajjad haidar

वाह रे सियासत तेरे रूप अनेंक, यह एक ऐसी पहेली है जिसको समझ पाना अत्यंत जटिल है। क्योंकि, कोई भी राजनीतिक व्यक्ति की कथनी एवं करनी में बहुत ही बड़ा अंतर होता है। कोई भी नेता क्या कहता है यह अलग विषय है परन्तु वह करता क्या है, इसे समझने एवं देखने की आवश्यकता होती है। चूँकि, राजनीतिक बिगुल बज चुका है, सभी नेतागण बारिश के मेंढ़कों की तरह से राजनीतिक तालाब में प्रवेश कर चुके हैं, सबने अपने-अपने राजनीतिक तीर भी छोड़ने आरंभ कर दिए हैं। क्योंकि, सत्ता की कुर्सी की रूप रेखा चुनाव से ही तय होनी है।
तो इसी क्रम में इस बार देश की सियासत को देखने के लिए एक नया मैदान मिल गया है। जिसको बेगुसरायं के नाम से जाना जाता है। चुनाव दिलचस्प इसलिए हो गया कि इस सीट से युवा प्रत्यासी पूर्व जे.एन.यू. छात्र संघ अध्यक्ष कनहैया कुमार मैदान में हैं। जोकि, सी.पी.आई के टिकट से चुनावी मैदान में हैं। इसलिए यह सीट चर्चित हो गई है। इसको और बल तब मिला जब भारत की वर्तमान सत्ताधारी पार्टी के चर्चित राजनेता गिरिराज सिंह को भी इसी सीट से भाजपा चुनाव लड़ाना चाह रही है। परन्तु, यह मामला और दिलचस्प तब हो गया जब गिरिराज सिंह ने इस सीट से चुनावी मैदान में जाने के लिए अपनी नाराजगी जाहिर की। ज्ञात हो कि गिरिराज सिंह एक चर्चित राजनेता हैं जोकि, अपने कार्यों से कम तथा अपनी बयान-बाजियों से अधिक जाने जाते हैं। प्रत्येक दिन गिरिराज सिंह अपने बयानों में एक अलग तरह की तस्वीर का अविष्कार करते रहते थे। जनता में चर्चा और इस बात से शुरू हो गई की गिरिराज सिंह अक्सर कनहैया कुमार के खिलाफ अपने शब्दों का प्रयोग करते रहते थे और जब आज भाजपा ने उनको वास्तव में आमने-सामने कर दिया तो वही गिरिराज सिंह जी हैं जोकि अब अपने ही दल के फैसले से नाखुश नजर आ रहे हैं। एक समाचार एजेन्सी को दिए अपने इंटरव्यु में गिरिराज सिहं ने अपनी चुनावी सीट को बदलने का मुद्दा खुद अपने आला नेतृत्व पर ही उठा दिया कि, पार्टी नेतृत्व ने हमें कान्फिडेंस में लिए बगैर ऐसा फैसला कैसे कर दिया? अब परिणाम कुछ भी आए यह अलग विषय है परन्तु, देश की जनता के लिए यह सीट काफी दिलचस्प एवं मनोरंजन का केन्द्र हो गयी है। गिरिराज सिंह की इस सीट से चुनाव लड़ने की नाराजगी का कारण पूरी तरह से साफ दिखाई दे रहा है। क्योंकि, बेगुसरायं सीट के मतदाताओं की संख्या कुछ अलग ही प्रकार से प्रभावी है।
अवगत करा दें कि इस सीट पर मतदाताओं की संख्या का समीकरण कुछ इस प्रकार है। इस सीट पर भूमिहार मतदाताओं की संख्या लगभग पाँच लाख है। जोकि, एकतरफा चुनाव का परिणाम करने में सक्षम एवं प्रबल है। उसके बाद बारी आती है मुस्लिम मतदाताओं की, मुस्लिम मतदाता भी इस सीट पर काफी निर्णयक भूमिका में हैं। जोकि, लगभग ढ़ाई से तीन लाख के बीच में हैं। उसके बाद नम्बर आता है यादव मतदाता का, यादव मतदाता भी इस सीट पर अपनी दावेदारी रखते हैं।
खास बात यह है कि भूमिहार मतदाता पाँच लाख की संख्या में इस सीट पर अपने धमक रखते हैं जोकि, पूरी तरह से कनहैया कुमार के पक्ष में जाता है। क्योंकि, कनहैया कुमार भी स्वयं भूमिहार बिरादरी से ही आते हैं। और भूमिहार बिरादरी का वोट बैंक एक साथ एक सीट पर इतनी अधिक संख्या में होना अपने आपमें साफ एवं स्पष्ट संकेत है। क्योंकि, देश का वर्तमान मौजूदा राजनीतिक समीकरण खास करके उत्तर प्रदेश एवं बिहार का जातीय धुरी के चारों ओर चक्कर लगाता है। अतः बेगुसराय की सीट इस समीकरण के आधार पर कनहैया कुमार के पक्ष में जाती है। क्योंकि, बिरादरी का वोट बैंक यदि जातीय ध्रुवीकरण पर आकर टिक जाता है तो कनहैया बहुत ही अधिक वोटों से जीतते हुए दिखाई दे रहे हैं। यह अलग विषय है कि भूमिहार वोट बैंक एक जुट न हो और भाजपा के साथ चला जाए। परन्तु, प्रश्न अब यह है कि जातीय राजनीति के दौर में इससे इतर मतदाताओं के जाने का संदेह पालना भी शायद गलत ही होगा। बिरादरी का एक चर्चित प्रत्यासी मिल जाने के कारण जातीय ध्रुवीकरण होना लगभग तय है। क्योंकि, उत्तर प्रदेश एवं बिहार की राजनीति जातीय समीकरणों की धुरी पर ही घूमती है। साथ ही मुस्लिम वोट बैंक भी जोकि कनहैया के पक्ष में जाना तय है। जबकि, राजद ने तनवीर हसन को मैदान में उतार कर कनहैया कुमार को रोकने का प्रयास किया है। परन्तु, जिस तरह से कनहैया कुमार को अभी वोट से पहले सपोट मिल रहा है वह एक अलग ही संकेत देता हुआ दिखाई दे रहा है। क्योंकि, कनहैया एक गरीब परिवार से आते हैं। कनहैया कुमार आज के युग का आर्थिकीय चुनाव लड़ने की स्थिति में नहीं थे, तो कनहैया ने जनता से चुनाव में सहयोग करने का एलान किया। फिर जनता ने मात्र चौबीस घंटे के अंदर कनहैया का सहयोग करके उन्हें मजबूत कर दिया जबकि अभी मतदान को बहुत दिन शेष हैं। यदि यह क्रम इसी प्रकार चलता रहा तो कनहैया के पक्ष में जनता के द्वारा मदद की रेखा बहुत ही आगे निकल जाएगी। राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं है परन्तु, वर्तमान समय के समीकरण अलग ही दिशा में जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।
विचारक ।
(सज्जाद)

matruadmin

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