छुट्टी का बीतना

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rambahadur

छुट्टी के दिन छुट्टी जैसे नहीं होते

उसी दिन कमबख्त सब काम होते
छुट्टी के दिन ही मुहल्ले में आते हैं
मलाई वाले, फेरीवाले, कबाड़ी वाले
उनकी आवाज से ही टूटती है
टूटे फूटे सामानों की भी नींद
संगी साथी भी आते हैं मिलने
पर होते वो भी जल्दी में ही
नहीं होती बात चीत भी ढंग से
क्लीन शेव का भी समय नहीं होता
ऐसा हो जाता है छुट्टी का दिन
रेजर में पड़े ब्लेड थक जाते हैं
लेकिन छुट्टी के दिन कुछ लोग
कैसे बाल रंगने के लिए वे लोग
समय निकाल ही लेते हैं अपना
मैं अकेला  ही देखता  हूं सपना
#राम बहादुर राय “अकेला”
एम.ए.(हिन्दी, इतिहास ,मानवाधिकार एवं कर्तव्य, पत्रकारिता एवं जनसंचार),बी .एड.
मानवाधिकार कार्यकर्ता एवं स्वतंत्र पत्रकार,
बलिया (उत्तर प्रदेश)

matruadmin

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