कुम्भ मेले का हिंदू धर्म में बहुत महत्व है । कुम्भ दो प्रकार का होता है – अर्ध कुम्भ और पूर्ण कुम्भ या महाकुम्भ । कुम्भ मेले का इतिहास लगभग 850 साल पुराना है और ऐसा माना जाता है कि आदि शंकराचार्य जी ने इसकी शुरुवात की थी, परंतु कुछ कथाओं के मतानुसार कुम्भ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गयी थी । मंथन से प्राप्त अमृत उज्जैन, नासिक, हरिद्वार और इलाहाबाद के स्थान पर ही देवताओं और असुरों में खींचा तानी से छलककर अमृत का बूँद इसी चारों स्थानों पर गिरा था । इसी कारण इन स्थानों पर ही हर तीन साल बाद कुम्भ मेले का पर्व होता आ रहा है ।
गुरु एक राशि लगभग एक साल रहता है इसी तरह बारह राशियों में घुमते हुए उसे बारह साल का समय लगता है । कुम्भ के लिए निर्धारित चारों स्थानों में प्रयाग के कुम्भ का विशेष महत्व है । 12 साल के बाद गंगा,यमुना,सरस्वती के संगम पर आयोजित किया जाता है । हर 144 साल बाद यहां महाकुम्भ का आयोजन होता है और इसका निर्धारित स्थान प्रयाग को ही माना गया है। कुम्भ योग के विषय में विष्णु पुराण में बताया गया है कि जब गुरु कुम्भ राशि में होता है तो सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब हरिद्वार में कुम्भ लगता है । 1986, 1998,2010 के बाद अब 2021 में लगेगा । गुरु जब कुम्भ राशि में प्रवेश करता है तब उज्जैन कुम्भ लगता है । 1980, 1992, 2004, 2016 में लगा है ।
ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड की रचना से पहले ब्रह्मा जी ने यहीं अश्वमेघ यज्ञ किया था । इस यज्ञ के कारण भी कुम्भ का विशेष महत्व है । कुम्भ और प्रयाग एक दुसरे के पर्यायवाची है ।
कुम्भ में अखाड़ें का विशेष महत्व होता है । अखाड़ें का आरम्भ मुगलकाल से हुई थी । यह ऐसा साधुओं का दल होता है जो शस्त्र विद्या में पारंगत रहता है । और एक खास बात यह है कि सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त केवल 13 अखाड़ें ही आते है जिनमें 7 शैव, 3 वैष्णव व तीन उडासीन (सिक्ख) है, परंतु इस बार एक और अखाड़ा बढ़ गया है 14 अखाड़ें की संख्या एस बार कुम्भ मेले में शामिल है । इन सभी अखाड़ों की अपनी – अपनी विशेषता व महत्ता होती है । इनके कानून भी अलग होते है इनकी दिनचर्या और इनके इष्टदेव भी अलग – अलग होते है । पहली बार किन्नर अखाड़ा भी कुम्भ मेले में शामिल रहेगा । यह भी बता दे रहे है कि इसके पहले उपरोक्त 13 अखाड़ों को ही मान्यता प्राप्त था 14वें नये किन्नर अखाड़ें को भी मान्यता मिली है और इस बार उनकी भी पेशवाई निकाली जा रही है । इस अखाड़ें में करीब 2500 साधु के शामिल होने की उम्मीद है और इस अखाड़ें की महामंडलेश्वर श्री लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी जी है । पेशवाई एक शोभा यात्रा है जिसमें अखाड़ों के आचार्य, पीठाधीश्वर, महामंडलेश्वर साधु – संत और नागा सन्यासियों का कारवां हाथी,घोड़ें, ऊंट पर सवार होकर बड़ें धूम – धाम से नाचते – गाते वैकल्पिक आवास रूपी अखाड़ों में जाते है । इसे ही पेशवाई कहते है । इस बार प्रयागराज कुम्भ में पहली बार किन्नर अखाड़ा सहित 14 अखाड़ों की पेशवाई होगी ।
हिंदू धर्म में कुम्भ की धार्मिक मान्यता है और इसे एक महत्व पूर्ण पर्व के रूप में मनाया जाता है । कुम्भ मेला हर 12 साल में आता है । दो बड़ें कुम्भ मेलों के बीच एक अर्ध कुम्भ भी लगता है । इस बार भी अर्ध कुम्भ मेला प्रयागराज में लगा है । भारतवर्ष का सबसे बड़ा मेला कुम्भ का मेला है जो कि विश्व के सबसे बड़ें धार्मिक आयोजनों में से एक है । जहां करोड़ों की संख्या में लोग बड़ें ही आस्था के साथ शामिल होते है और ऐसा मानते आये है कि यहां स्नान करने से सभी पुराने पाप धुल जाते है और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
परिचय-
नाम -डॉ. अर्चना दुबे
मुम्बई(महाराष्ट्र)
जन्म स्थान – जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)
शिक्षा – एम.ए., पीएच-डी.
कार्यक्षेत्र – स्वच्छंद लेखनकार्य
लेखन विधा – गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।
कोई प्रकाशन संग्रह / किताब – दो साझा काव्य संग्रह ।
रचना प्रकाशन – मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।
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काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।
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कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।
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दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।
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अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।