जयपुर_डायरी  (भाग 2)

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जयपुर मेरे दिल के काफी करीब रहा है…
पाँचवी बार यहां आया हूँ। अनेकों यादें जुड़ी हैं इस शहर के साथ…
छात्र जीवन में लिखी गई मेरी एक प्रमुख कहानी ‘एक थी निरोत्तमा’ का ताना बाना जयपुर के इर्द गिर्द ही बुना गया था।
इस बार की जयपुर यात्रा के भी कई रंग हैं जिन्हें बारी बारी से साझा करूंगा…

15 जनवरी को पूरी भव्यता के साथ आरंभ हुए ICETEAS (आइसटीज) के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का समापन 16 जनवरी की शाम को हुआ। दो दिन तक लगातार सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक का व्यस्ततम कार्यक्रम रहा…
राजस्थान की इस धरती पर आयोजकों के स्वागत सत्कार से मैं हर क्षण अभिभूत होता रहा…
मेरी वापसी की फ्लाइट 18 को थी मुंबई होकर जो मौसम की खराबी के कारण 19 में तब्दील कर दी गई। मेरे पास जयपुर में अच्छा खासा समय था जिसका उपयोग मैं अपने हिसाब से कर सकता था।
मेरे लिए एक गाड़ी हर समय उपलब्ध थी और ड्राईवर सुरेन्द्र भी साथ थे।
…और इस समय के सदुपयोग के लिये #पुष्कर भ्रमण से बेहतर कोई दूसरा विकल्प नहीं हो सकता था…

अजमेर से मात्र 14 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है पुष्कर…जो मंदिरों और झीलों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्घ है।

यह भगवान ब्रह्मा के एकमात्र मंदिर के तौर पर भी  जाना जाता है। इसे भगवान ब्रह्मा का निवास स्थल भी कहते हैं। मन्दिर के पास ही पुष्कर झील स्थित है जहां कार्तिक महीने में बड़ी संख्या में श्रद्घालु डुबकी लगाते हैं। पुष्कर हिन्दुओं के लिए एक परम पावन धाम है।

पुष्कर झील का निर्माण फूलों से हुआ। पद्म पुराण के अनुसार इस झील का निर्माण उस समय हुआ जब यज्ञ के स्थान को सुनिश्चित करते समय ब्रह्मा जी के हाथ से कमल का फूल पृथ्वी पर गिर पड़ा। इससे पानी की तीन बूदें पृथ्वी पर गिरीं, उनमें से एक बूंद पुष्कर में गिरी और इसी बूंद से पुष्कर झील का निर्माण हुआ।

ब्रह्माजी के इस मंदिर का निर्माण संगमरमर पत्थर से हुआ है और इसे चाँदी के सिक्कों से सजाया गया है। यहाँ मंदिर के फर्श पर एक रजत कछुआ है। ज्ञान की देवी सरस्वती के वाहन मोर के चित्र भी मंदिर की शोभा बढ़ाते हैं। यहां गायत्री देवी की एक छोटी प्रतिमा के साथ ब्रह्माजी की चार मुखों वाली मूर्ति भी है जिसे चौमूर्ति कहा जाता है।

इस पवित्र मंदिर का प्रवेश द्वार संगमरमर का और दरवाजे चांदी के बने हैं। मंदिर के बगल में एक गर्भ गृह भी है जिसमें एक प्राचीन शिवलिंग स्थित है। अंदर जाने और वापस निकलने के लिए अलग अलग सीढ़ियां बनी हैं।
परिसर में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम हैं। मंदिर के हर हिस्से में सुरक्षाकर्मी मुस्तैद नजर आये।

पुष्कर झील में नहाने के लिए के लिए 52 घाट बने हुए हैं जहां श्रद्घालु डुबकी लगाते हैं।
पुष्कर मेला, ऊंटों के मेला के रूप में भी जाना जाता है। यह भारत के सबसे बड़े मेलों में से एक है।
दर्शन करके बाहर निकलते समय रेगिस्तान के कई जहाज नजर आये। कुछ विदेशी सैलानी उनके साथ सेल्फी ले रहे थे। आगे एक रेस्टुरेन्ट के सामने बोर्ड लगा था.. ‘कुल्हड़ वाली मसालेदार चाय’… फिर क्या था…  हमने भी इस मौके को हाथ से जाने न दिया…फिर निकल पड़े अरावली पर्वत श्रृंखला की चढ़ाई की ओर… यहां स्थित नाग पर्वत अजमेर और पुष्कर को अलग करता है…
जारी…

#डॉ. स्वयंभू शलभ

परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।