बदलते भारत की तस्वीर के बीच विकास की बाट जोहता एक शहर.

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swayambhu
चलिये नव वर्ष के मौके पर चंपारण के गौरवशाली इतिहास को याद करते हुए थोड़ा चिंतन करें कि विकास के इस दौर में आजादी के 71 वर्ष बाद भी हमारे सीमाई शहर रक्सौल का हाल क्या है और हम कहां हैं…
आज हमें यह समझना भी जरूरी है कि विकास केवल मूलभूत इंफ्रास्ट्रक्चर से जुड़ा एक शब्द मात्र नहीं है और विकास का मतलब केवल मूलभूत सुविधाओं का होना मात्र नहीं है। विकास हमारे व्यवहार और नियमों के प्रति सम्मान में भी दिखाई देना चाहिए।
सरकार बदल जाती है लेकिन प्रशासन तंत्र वही रहता है। उसकी कार्य प्रणाली में परिवर्तन नहीं होता। समस्याओं को एक टेबल से दूसरे टेबल पर सरका देने से समाधान नहीं मिल सकता। पदाधिकारी जबतक आम लोगों की पीड़ा को समझकर मजबूत इच्छाशक्ति के साथ कदम नहीं बढ़ाएंगे तबतक समाधान की राह नहीं खुलेगी।
मेरा मानना है कि केवल सरकार, व्यवस्था या जन प्रतिनिधियों को दोषी ठहराकर विकास की बात करना उचित नहीं। वे अपना काम करें या न करें। हम भी तो अपना काम नहीं कर रहे। हम भी तो सोये हुए हैं। हमें अपने क्षेत्र, अपने गांव, अपने शहर की बदहाली से कोई फर्क नहीं पड़ता…
जरा इस शहर की नब्ज टटोलें… अंतरराष्ट्रीय महत्व का यह शहर समस्याओं का शहर बन कर रह गया है… बीते वर्षों में देश में बहुत कुछ बदला लेकिन इस शहर की सूरत नहीं बदली… वर्षों से जर्जर पड़े स्टेशन रोड का काम आधा अधूरा छोड़कर ठेकेदार गायब है… मुख्य सड़क टूट रही है… सरिसवा नदी प्रदूषित है… शहर के नाले जाम पड़े हैं…सड़क पर कूड़े कचरे का अंबार है… शहर की जल निकासी की कोई सही व्यवस्था नहीं है… रक्सौल में क्लिंकर की उतराई बंद होने के बाद दूसरे तरह के डस्ट मेटेरियल स्टेशन मालगोदाम पर बाकायदा उतारे जा रहे हैं… प्रदूषण के कारण लोगों का जीना आज भी मुहाल है… ओवरब्रिज निर्माण कार्य और मैत्री पुल का मरम्मत कार्य अधर में लटका है, संबंधित मंत्रालय और विभाग की फाइलें एक टेबल से दूसरे टेबल पर घूम रही हैं, नहर रोड निर्माण कार्य शुरू होने की बाट जोह रहा है… आईसीपी चालू हो जाने के बाद भी भारी वाहनों की आवाजाही शहर से होकर पूरी तरह बंद नहीं की गई…कोई देखने सुनने वाला नहीं है…कितना दर्द गिनाया जाय…एक जगह हो तो बता दें कि दर्द इधर होता है…
कैसी विडंबना है कि इन बुनियादी आवश्यकताओं के लिए भी आम लोगों को आंदोलन पर उतरना पड़ता है…
समय समय पर जन समस्याओं को उठाना और व्यवस्था की कमी कमजोरियों को बताते हुए सरकार और चुने हुए नुमाइंदों से सवाल पूछना भी जरूरी है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि गलत लोगों की सक्रियता समाज को उतना बरबाद नहीं करती जितना सही लोगों की निष्क्रियता समाज को बरबाद करती है।
हम जिस भी क्षेत्र में कार्यरत हैं या जिस भी व्यवसाय से जुड़े हैं अपनी आवाज उठाकर व्यवस्था में सुधार का प्रयास कर सकते हैं। सकारात्मक सोच के साथ हम जितना भी परिवर्तन ला सकें वही देन होगी हमारी आने वाली पीढ़ी के लिए…
परिवर्तन की बातें करने के बजाय कई बार आगे बढ़कर स्वयं उदाहरण बनना पड़ता है। तब जाकर परिवर्तन का बीज पनपता है।
यह चंपारण सत्याग्रह की भूमि है और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आज इस सीमाई क्षेत्र के लोगों को यह आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है कि इतने गौरवशाली इतिहास के बावजूद भी यह सीमांचल विकास की मुख्य धारा में शामिल क्यों नहीं हो पाया… आखिर क्यों ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व होने के बावजूद यह क्षेत्र उपेक्षित पड़ा रहा… आखिर क्यों यहां राजनैतिक और सामाजिक संकल्प शक्ति का अभाव बना रहा…
महात्मा गांधी ने जो लौ यहां के लोगों के दिलों में जलायी वह समय के साथ मद्धिम कैसे पड़ गई… यहां के लोग उस सत्याग्रह को कैसे भूल गए…
कैसे यह क्षेत्र विकास की मुख्य धारा में जुड़ेगा… कैसे हमारी सरकार और हमारे जन प्रतिनिधि इसके सर्वांगीण विकास के लिए प्रतिबद्ध होंगे… कैसे इस क्षेत्र के विकास की लंबित योजनाएं पूरी होंगी…कैसे यहां की ज्वलंत समस्याओं का समाधान होगा… आज इस नव वर्ष के हर्षोल्लास के बीच इस विषय पर भी विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।
इस नगर के गौरव को पुनर्स्थापित करने और इसे स्वच्छ, सुंदर और समृद्ध बनाने के लिए सरकारी, गैर सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थानों के साथ हरेक व्यक्ति को अपनी भूमिका और अपनी जवाबदेही तय करनी होगी…

#डॉ. स्वयंभू शलभ

परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।

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आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।