बातुक भाग-1

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aashutosh kumar

एक था बातुक
उसे दोस्ती थी
राज कुमार से
वह जब कहीं जाता
बातुक को अपने साथ ले जाता।
एक दिन वे दोनों
जा रहे थे
धने जंगल सून-सान
विरान राहों पर
राजकुमार ने पूछा?
बातुक कुछ बोलो!
ऐसे चुप क्यो हो?

बातुक कुछ सोचकर
बोला! राजकुमार-

“हम तुम एक दोस्त ठहरे
फिर भी हमारी दूरियाँ है
तुम्हारी जिम्मेदारी अलग
और हमारी मजबूरियाँ है”

राजकुमार को कुछ समझ
नही आया।
अतः राजकुमार ने समझाने को कहा?

बातुक बोला !
“तुम राजकुमार हो
राजा तो एक दिन बन ही जाओगे
मै ठहरा एक आम आदमी
मजबूरी का मारा हुआ
तेरे सिवा कहा जाएँगे”

राजकुमार को यह बात अटपटी लगी।
अतः राजकुमार चुप रहे ।

“बातुक समझ गया था
राजकुमार नाराज हो गये है
लेकिन बातुक तो सच्चाई
बोला था जो कडवी थी”

यही तो होता आया है
जो जितना बडा है वह
और बडा हो जाता है।
पीढी-दर-पीढी होता चला जाता है
ये किसी राजधराने की बात हो या
राजनेताओ की या अमीर घरानो की
अपनी बात ही सब करते है
लोगो की कौन सुनता है।

“आशुतोष”

नाम।                   –  आशुतोष कुमार
साहित्यक उपनाम –  आशुतोष
जन्मतिथि             –  30/101973
वर्तमान पता          – 113/77बी  
                              शास्त्रीनगर 
                              पटना  23 बिहार                  
कार्यक्षेत्र               –  जाॅब
शिक्षा                   –  ऑनर्स अर्थशास्त्र
मोबाइलव्हाट्स एप – 9852842667
प्रकाशन                 – नगण्य
सम्मान।                – नगण्य
अन्य उलब्धि          – कभ्प्यूटर आपरेटर
                                टीवी टेक्नीशियन
लेखन का उद्द्श्य   – सामाजिक जागृति

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