सुकून

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ashok sapada
शहरों में कहां मिलता है वो सुकून जो गांव में था,
जो मां की गोदी और नीम पीपल की छांव में था,
वो बचपन वाली रिमझिम रिमझिम होती बरसात,
वो हमारी मेहनत से बनाई कागज़ की नाव में था,
वो लुका छिपी और पकड़म पकड़ाई के खेल में,
साइकिल सीखते गिर के लगने वाले घाव में था,
वो प्यारी पुसी मौसी का घर आँगन से दूध चुराना,
जैसे सूचना देते हुए काले कौवे के कांव कांव में था,
जवानी में गाँव की गौरी देख टूटी फूटी शायरी करना
हमारे उस अल्हड़पन की शायरी के हर भाव मे था
आज लगता की जिन्न है अपने घरवालों के लिए
जिंदगी में तो ख़तरा जैसे उसके हर इक दांव में था
फ़ौजी बन भूल गए दुनियां देखने के ख़्वाब हम
देशभक्ति का सपना बचपन से हमारे हावभाव में था,
#अशोक सपड़ा हमदर्द
 
परिचय-दिल्ली निवासी अशोक सपड़ा हमदर्द जो 30 जनवरी 1977 को जन्में व इग्नु से स्नातक तक पढ़े जिनकी कई पत्र पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशित होते है| अब तक दो काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके है|

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