आवारागर्द आदमी और औरतें

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आदमी  और औरतें
सारी सीमाऐं लांघ जाते है,
अपने-अपने आवारागर्द ख्यालो में,
औरतें अपने पतियों का हाथ छुड़ा
ढूंढना चाहती है कुछ आजाद पल
और साथ ही जो पति में नहीं दिखा कभी
उस प्रेमी की बाहों में सिमटने को
लालायित हो जाती है,
आदमी अपने जीवन की एकरसता से उक्ताकर
कुछ नया पाना चाहते है
नयेपन की परिभाषा में फिर भी ना उलझ कर
वो बस किसी और के हाथ के साथ
किसी शाम नया चाँद देखना चाहते है,
अपने-अपने ख्यालो में,
और फिर बंध जाते है अपनी-अपनी
जिम्मेवारियो की जंजीरो में, लेकिन
इन आदमीयो और औरतो में से
कुछ लांघ जाते है देहरी, छिपकर
और राज छिपा जाते है
बाकि की दुनिया सारी से
और कुछ ऐसे भी जो बिना डरे ही
सभी वर्जनाऐं तोड़ देते है
सभ्य समाज की,
बदचलन कहलाते है,
आदमी और औरते
जो ख्यालो में आवारागर्दी करते है, या
सफेदपोश अय्याश होते है
या बदचलन कहलाने का दम रखते है
तीनो ही जैसे समानार्थक शब्द बन जाते है,
आवारागर्द आदमी और औरतें…..

                   #हरदीप सबरवाल.

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