लोकतंत्र है देश का आधार

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लोकतंत्र है देश का आधार
बनो तुम इसके पहरेदार
भारत की गरिमा छू ले तुमसे आकाश
 किंतु अपने पथ से विचलित ना हो
हो अपने कर्तव्य का भान
राजस्थान में चुनावी रणभेरी बज चुकी है । 7 दिसम्बर को नई सरकार को चुनने के लिए हम सभी मतदान में आहुति देंगे । 11 दिसम्बर को एक सरकार को हम चुन लेंगे ।चुनाव ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें राज्य के लोग अपना मत देकर अपने पसंदीदा व्यक्ति को जीता कर सरकार चलाने का मौका देंगे । चुनाव के माध्यम से ही हम एक अच्छी सरकार बना सकते हैं और देश का भविष्य बदल सकते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। यहाँ पर एक व्यक्ति का मत सरकार बना सकता है, तो उसे गिरा भी सकता है। यहाँ एक से अधिक व्यक्ति चुनावों में खड़े होते हैं और सरकार के लिए अपनी दावेदारी जनता के आगे प्रस्तुत करते हैं। इस तरह हमें चुनाव का अवसर मिलता है और अलग-अलग पार्टियों को सत्ता में आने का भी अवसर मिलता है। उसके पाँच सालों के कार्यों के आधार पर हम निर्धारित करते हैं कि आमुक पार्टी फिर से सत्ता में आने के काबिल या नहीं। भारत में हर पाँच साल बाद चुनाव कराएं जाते हैं। एक सरकार को पाँच देश की बागडोर संभालने का अधिकार है। इसके बाद फिर से चुनाव किए जाते हैं। हमारे देश में चुनावों को बहुत प्रभाव पड़ता है। सारी व्यवस्था ठप्प हो जाती है। लोग उसी में लग जाते हैं। वोट डालने वाले और वोट पाने वाले दोनों चुनावी परिणाम का इतंज़ार करते हैं। नेता जनता को प्रसन्न करने के लिए क्या कुछ नहीं करते। चारों तरफ चुनावी प्रचार का बोलबाला होता है। राज्य मानो ठहर जाता है।
जनतन्त्र न होकर राजतन्त्र बन जाता है। इस प्रकार से लोकतन्त्र जनता का प्रतिनिधि तन्त्र है। इसमें समस्त जन समुदाय की सद्भावना और सद्विचार प्रकट होता है।
लोकतन्त्र अर्थात् जन प्रतिनिधि एक ऐसा तंत्र है, जिसमें जनकल्याण की भावना से सभी कार्य सम्पन्न किए जाते हैं। जनकल्याण की भावना एक एक करके इस शासन तन्त्र के द्वारा हमारे सामने कार्य रूप में दिखाई पड़ने लगती है। लोकतन्त्र का महत्व इस दृष्टि से भी होता है कि लोकतन्त्र में सबकी भावनाओं का सम्मान होता है और सबको अपनी भावनाओं को स्वतन्त्र रूप से प्रकट करने का पूरा अवसर मिलता है। इसी प्रकार किसी भी तानाशाही का लोकतन्त्र करारा जवाब देता है। लोकतन्त्र का महत्वपूर्ण स्वरूप यह भी होता है कि इस तन्त्र में किसी प्रकार की भेद-भावना, असमानता, विषमता आदि को कोई स्थान नहीं मिलता है। इसके लिए लोकतन्त्र अपने चुनावी मुदों और वायदों के रखते हुए कमर कस करके उन्हें दूर करने की पूरी कोशिश करता है। चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ और उलझनें आ जाएँ, चुनाव की आश्वयकता इनसे अधिक बढ़ कर होती है।
लोकतन्त्र में चुनाव का महत्व इस तथ्य का प्रमाण है कि जनता का मनोभाव कुछ बदल रहा है। वह पूर्वापेक्षा यही करना चाह रहा है। इसलिए लोकतन्त्र में चुनाव का महत्व न तो कोई समय देखता है और इससे होने वाले परिणामों और कुपरिणामों पर ही विचार करता है। हमारे देश में सन् 1976 में लगी हुई आपातकालीन अवधि के फलस्वरूप होने वाले अत्याचारों का प्रबल विरोध करने के लिए जब जनता ने इस आपातकाल के स्थान पर चुनाव की माँग की तो इन्दिरा सरकार को आपातकाल को तुरन्त ही हटा करके चुनाव कराना पड़ा था। इस चुनाव के बाद ही पूरी शासन प्रणाली ही बदल गयी और जनता पार्टी की सरकार का गठन हुआ था। इसने उस समय की दुखी और निराश जनता को विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ और राहत प्रदान करने वाला शासन सूत्र प्रदान किया था।
लोकतन्त्र और चुनाव के स्वरूप पर प्रकाश डालने का कार्य तभी पूर्ण कहा जाएगा। जब इसकी अच्छाइयों के साथ साथ इसकी बुराइयों को भी प्रकाशित किया जा सके। लोकतांत्रिक सरकारी प्रक्रियाओं पर विचार रखने से हम यह देखते हैं कि लोकतन्त्र के चुनाव के बाद इसमें कई कमियों का प्रवेश हो जाता है।
अब समय आ गया
नए सिरे से सोचने का
लोकतंत्र की बागडोर
सच में संभालने का
बस तुम हो देश के लिए
मंजिल अपनी पाना है
 बेखौफ हो अपने कदमों को बढ़ाते जाना है तुम्हें ही मिलजुल कर लोकतंत्र की आवाज
हर मानव में जगाना है
फिर से इसे संपन्न राष्ट्र बनाना है।
#रेनू शर्मा*शब्द मुखर*
जयपुर

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