“कलम का सिंहासन”

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anita tiwari
 काठ- लोह ना स्वर्ण -रजत का है मेरा सिंहासन,
कलम -स्याह के आसन बैठ करता हूं मैं शासन ।
नीले काले स्याह से लिखता,
प्यार मोहब्बत की बातें ।
प्रिय -प्रेयसी के बढ़े,
धड़कन की जज्बातें।
जन -समाज की  पुकार सुन ,
दौड़ा चला आता हूं ।
शब्द सुमन अर्पित कर,
मैं परिवर्तन लाता हूं ।
कलम -स्याह के आसन बैठ करता हूं ,
मैं शासन ।
देश भूमि पर बलि हो जाते,
 गाथा उनकी गाता हूं।
सबला का जब शोषण हो,
अधिकार उन्हें दिलाता हूं ।
पापी अन्याई ,अत्याचारी जो ,
सबक उन्हें सिख लाता हूं,।
शब्दों के तीर छोड़ कर,
दुश्मन सारे भगाता हूं।
कलम स्याह के आसन बैठ,
करता हूं मैं शासन ।
काठ-लौह ना स्वर्ण-रजत का है मेरा
सिंहासन।
मैंने उपजे रहीम ,कबीर, तुलसी को,
मैं लाया हूं ।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ,उनकी वीरता गाथा गाया हूं ।
दहेज प्रथा और सती प्रथा का ,
अंत हुआ मेरे कारण ।
नारी जाति का हुआ उद्धार,
पढ़ कर देखो उदाहरण ।
कलम-स्याह के आसन बैठ ,
करता हूं मैं शासन ।
काठ-लौह ना स्वर्ण-रजत का है मेरा सिंहासन।
ना मैं झुकता ,ना में टूटता ,ना ही मैं बिकता  हूं ।
मक्कारो का पर्दाफाश कर,
शब्द-अंगार उगलता हू।
वात्सल्य-भक्ति, श्रृंगार-वीर के भाव, सजाकर साहित्य को अर्पित करता हूँ।
कलम-स्याह के आसन बैठ, करता हूँ मैं शासन।
काठ-लौह ना स्वर्ण-रजत का है मेरा सिंहासन।
काठ-लौह ना स्वर्ण-रजत का है मेरा सिंहासन।
कलम स्याह के आसन बैठ, करता हूँ मैं शासन।
#अनिता तिवारी
परिचय-
अनिता तिवारी
शिक्षिका 
अंबिकापुर, ( सीतापुर) 
सरगुजा

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