बिटियां की पाती

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archana dube

हे माई ! मैं बोझ नहीं, मुझको यूँ ना दूत्कारों,

तुम ही तो मेरी सब कुछ हो, मुझकों यूँ ना मारों,

आने दो मुझको जहाँन में, नाम करूँगीं रौशन,

कर दूँगीं न्योछावर मैं, मात- पिता पर जीवन ।

तेरी हर तकलीफ को माता, ममता से भर दूँगी,

मैं भी तेरी कोख से जन्मी, खून आपका ही रग में,

कह दो इस जहांन से माता, बेटी है मेरी छाया,

लालन – पालन करूँगीं इसकी, ये भी है मेरी काया ।

बोझ समझकर बेटी को, हे माँ तुम ना अपमान करो,

बिन नारी की सृष्टि नहीं है, ये बात सदा ही याद रखो,

बतला दो ये आज सभी को, सोच बदल जाय इनकी,

बहन न होगी तो भाई की, बाहें होगीं सुनी ।

राखी का रिश्ता पावन है, मेरे बिन कौन निबाहे,

रूखी- सूखी खाकर माँ मैं, रहूँगीं तेरे संग में,

तेरे ही आदर्शो पर चल, जीवन कर दूँगीं उज्वल,

इन लोगों के स्वार्थ के खातिर, कोख न अपनी खोना ।

हे माँ ! तुम भी गर्व करोगीं, चलोगी सीना तानें,

बेटी – बेटा में क्या अंतर, बात आज ये जानों,

बेटी बिन बेटों को माता, ब्याहोगी किस ढ़ंग से,

फिर घर की खुशियां तेरी माता, आयेगी किस रंग से ।

ना जाने क्यू बेटी को, बोझ सभी है माने,

इस अभिशाप से ग्रस्त सभी है, फिर भी ना पहचानें,

बेटी ही रिश्तों की डोरी, संग में लेकर चलती,

पत्नी, माता, बहन जो बनकर, रिश्तों की छोर को सहती ।

दिल पर हाथ रख करके मइया, सुनो आवाज ये मेरी,

बड़ी व्यथा है करूण कथा है, कौन सुने बिन तेरी,

नारी ही नारी को जाने, दूःख – दर्द की बातें,

मैं तो अभी बहुत छोटी हुँ, आप मुझे पहचानों ।

परिचय-

नाम  -डॉ. अर्चना दुबे

मुम्बई(महाराष्ट्र)

जन्म स्थान  –   जिला- जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

शिक्षा –  एम.ए., पीएच-डी.

कार्यक्षेत्र  –  स्वच्छंद  लेखनकार्य

लेखन विधा  –  गीत, गज़ल, लेख, कहाँनी, लघुकथा, कविता, समीक्षा आदि विधा पर ।

कोई प्रकाशन  संग्रह / किताब  –  दो साझा काव्य संग्रह ।

रचना प्रकाशन  –  मेट्रो दिनांक हिंदी साप्ताहिक अखबार (मुम्बई ) से  मार्च 2018 से ( सह सम्पादक ) का कार्य ।

  • काव्य स्पंदन पत्रिका साप्ताहिक (दिल्ली) प्रति सप्ताह कविता, गज़ल प्रकाशित ।

  • कई हिंदी अखबार और पत्रिकाओं में लेख, कहाँनी, कविता, गज़ल, लघुकथा, समीक्षा प्रकाशित ।

  • दर्जनों से ज्यादा राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रपत्र वाचन ।

  • अंर्तराष्ट्रीय पत्रिका में 4 लेख प्रकाशित ।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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