सजा 

0 0
Read Time14 Minute, 37 Second
ramesha kumar
      अच्छे दिन की शुरुआत हो चुकी थी लोगों को ठंढक का एहसास प्रचुर मात्रा में होने लगा था। लोगों के शरीर से गर्मी के पतले-पतले कपड़े उनी कपड़ों के आगे घुटने टेक रहे थे। जो लोग गर्मी के दिनों में कई बार स्नान किया करते उनके स्नान करने जाड़ेकी बारी में कमी आने लगी। अपने-अपने दरवाज़ों के पास अलाव जलाने के लिए लकड़ी खर-पतवार का इन्तजाम, सुरज के ढलते ही बच्चे और व्यस्क कर लेते थे। कहा जाता है कि प्रत्येक जीव मौसम के बदलते ही या बदलने के प्रभाव को महसूस कर अपने रहन-सहन में बदलाव करना उनके स्वभाव में शामिल हो गया है। सुबह-सुबह खेतों में गेहूँ के नन्हे-नन्हे अंकुरण कनकनी के प्रकोप से सुरज के प्रकाश की उम्मीद लगाये सहयोग की भीख माँ रहें थे।
          कुछ ज्यादा ठंडी होने के वजह से द्वार पर अलाव सुलगाये गांव के धनवान व्यक्ति जमींदार साहब राम सिंह जी बैठे थे। रंग गोरा लम्बे कद काठी खादी कपड़े पहने हुए ठंडी और गरमी का आनंद उठा रहे थे। समय ही ऐसा आ गया है सोहरत और बलबुता किसी के पास रहता है तो उसके एक बार कहने पर उसके कार्य को निपटाने के लिए बहुत से लोग हाथ खड़े करने लगते हैं सोच विचार भी नहीं करते कि इस प्रकार से साथ देने से समाज का,मानवता के उपर आने वाले समय में क्या असर पड़ेगा। सामने से कोई व्यक्ति गुजर रहा था उसे जमींदार साहब अपनी ओज पूर्ण आवाज़ से बुलाते हुए कहा – वो मखन्चु….
“जी मालिक,सलाम मालिक क्या सेवा करें मालिक” मखन्चु हाथ जोड़कर इतना कहते हुए चुप होकर खड़ा हो गया।
“तुम्हारा भाई सखन्चु कहाँ है रे….” जमींदार की आवाज़ में।
“जी मालिक वो तो शुक्ला जी के  यहाँ काम कर रहा हैं।”-मखन्चु
“कब-तक खाली होगा।”-राम सिंह ।
“कल तक मालिक” -मखन्चु
“वो ठीक है”-राम सिंह।
“परसों दिन तुम दोनों सुबह में ही आ जाना हमारा चना बिदहना है”-राम सिंह उठते हुए बोले।
ठिक है मालिक -मखन्चु
“जरुर आना रह मत जाना कहीं, खेत उखड़ रहा है चना की बुवाई करने के लिए खेत में सपंक नमी चाहिए”-राम सिंह चार पाई पर लेटते हुए ।
          मखन्चु सोच विचार करते हुए अपने घर की ओर पथ पर सूर्य की सुनहली किरणों को चीरते हुए सोच रहा था कि बड़े लोग हैं काम तो करना ही पड़ेगा नहीं तो  दाना-पानी बन्द हो जायेगा,लोग जबरन पकड़ के ले जायेंगे काम भी करवायेंगे और मजदूरी भी नहीं देंगे इससे तो अच्छा होगा कि काम कर देने से ही अच्छा होगा………..तब तक अपने दरवाजे पर पहुंच चुके थे। उधर सखन्चु शुक्ला जी के यहाँ काम करने जाने की तैयारी कर रहा था।
” सखंचु भइया आप कल खाली है क्या ?”-मखंचु
“हाँ क्या बात है”-सखंचु
“जमींदार साहब का ढाई एकड़ चना की बुवाई करना था वही कह रहे थे कि दोनों भाई मिलकर हमारे खेत की बुवाई कर दो ….तो…क्या कहें उन्हें हम ” -मखंचु
“अरे कहना क्या है मजबूरी है अपनी करना तो पड़ेगा, नहीं तो, कह नहीं सकते क्योंकि हम लोग गरीब है”-सखंचु
           गरीबी,अमीरी का सदियों से गुलाम है न बात रखने की स्वतंत्रता होती है न ही कोई अधिकार जता पाता,शायद मानव जाति का गरीबी एक अभिशाप है जो न कभी खत्म हुआ है और न होगा कभी अगर एक गरीब,गरीबी में पैदा होता तो यह उसका दुर्भाग्य कहलाता है,अमीर,अमीरी में पैदा होता है तो उसका सौभाग्य कहलाता है। ईश्वर के द्वारा बनाया गया यह मानव पता नहीं किस हवा के साथ बह रहा है कि एक जन्मजात शिशु जिसको पता नहीं होता कि दुनिया क्या है उन्हें दो वर्गों में बाँट दिया जाता है -गरीबी और अमीरी  यह कैसी विडंबना है। सुबह होती है गरीब अमीर के एक इशारे पर नाचने के लिए तैयार होते हैं। हल्की-हल्की सी कनकनी धरातल पर स्पर्श कर रही है। उनकी बुन्दे घास के नोको पर अपनी चमक विखेर  रही थी। इसी प्रकृति के सौंदर्य में भूलते हुए जमींदार जी के घर दोनों भाई कुछ हेल्पर लेकर पहुच गए हैं।
“मालिक मालिक मालिक ………..” -आवाज़ लगाया मखंचु और सखंचु
“हाँ जी आ गये तुम दोनों…….ये चना है उठा लो और ये हल है और बैल को खूंटे से छोड़ा लो  सब लेकर खेत पर पहुंच जाओ”-सभी ओर इशारा करते हुए राम सिंह बोले।
          एक गरीब  अमीर का सहयोग करने चल देता है पुरे साथियों के साथ दिल में कुछ अरमान लिए अलग एक पहचान लिए खेत की ओर अग्रसर होते हुए। पांव में जूता नहीं तन पर उतना ज्यादा कपड़ा नहीं, ठंडी से टकराते हुए सर्द हवाओं को चीरते हुए खेत पर पहुंच जाते हैं। सभी लोग खेत का आर-कोन करने लगते हैं। दो जोड़ी बैल खेत में काम करने लगते हैं। धीरे-धीरे खेत में चना की बुवाई साम होने से पहले समाप्त हो चुकी थी। सभी  सहयोगी दल अपने अपने घर चले गये। बच गये खेत में दोनों भाई। बैल के कन्धे पर से जुवाठ को हटाये हल को अलग किए सब कुछ अलग अलग हो गया। उसी प्रकार जिस प्रकार से कोई परिवार जब एक दूसरे से काम रहता है तो आपस मे मिलकर अपने स्वार्थ की पूर्ति करते हैं।जब चना बोना था तो सभी दल हल जुवाठ पैना बैल सब के सब एक दूजे से  जुड़े हुए थे काम खतम होने के बाद सब अलग अलग हो गये। इसी प्रकार आज के समय में परिवार में भी बिखंडन होता है।
          उधर मखंचु बचा हुआ चना बोरे में भर दिया घर जाने की तैयारी होने लगी।बैल स्वतः अपने बसेरा की ओर चल दिये।अन्य औजार खेतों जहां तहां बिखरा पड़ा है। लालच मनुष्य के स्वभाव में भर गया है बस मौके की तलाश रहती है चाहे राजनीतिक क्षेत्र,कार्यालयी क्षेत्र किसानी क्षेत्र या न्यायिक क्षेत्र कोई क्षेत्र बाकी नहीं जहां लालच अपनी ताडंव न मचा रहा हो। शायद इसी का असर मखंचु और सखंचु के दिलों दिमाग पर बचे हुए चना को देखते हुए पड़ने लगा और उस चना को चुराने की जुगती लगाने लगे।
 “मखंचु ये चना अब मालिक को देना उचित है क्या ? ” -सवाल करते हुए पूछा सखंचु ने
“अरे भइया इस सब बड़ा आदमी है उन सबो के पास चना की कमी थोड़ी ही है इसे हम लोग घर लेकर चला जाय कह दिया जायेगा सभी चना बो दिया गया।” -मखंचु ने कहा।
“हाँ भाई इ सब बड़ा आदमी है गरीबों का खून चुस-चुस कर बड़ा हुआ अब देखो न हम सब कितना परिश्रम किये इस जाड़े के मौसम में पसीना बहाये ओ घर खटिया तोड़ रहा होगा ताव से इस चना का दाल सुरकेगा। क्यों नहीं हम लोग भी इसे ले अपने घर ले जाय…….सखंचु ने कहा।
  लोभ लालच जब किसी के दिल में समा जाता है तो गलत काम भी सही नजर आने लगता है। और गलती पर गलती मनुष्य करने लगता है। जो आये दिन होता रहता है। गलत लोग ही कुछ समय के लिए आज की दुनिया में सही साबित हो जाते हैं लेकिन स्थाई नहीं होते। अब चना ले जाने की बात होने लगी।
“लेकिन भईया इसे ले कैसे जाया जाय बहुत से लोग रास्ते में देखेंगे तो पता चल जायेगा बड़े लोगों का छोटे भी सहयोग करते हैं”-मखंचु ने कहा।
“हाँ यही  तो सोचने वाली बात है”-सखंचु बोला।
“सोचने का वक्त नहीं रहा साम होने लगी कनकनी पड़ने लगी ठंड भी पड़ने लगेगा हो सकता है घूमते हुए मालिक भी आ जाये जो करना है जल्दी कीजिए……मखंचु ने डरते हुए बोला।
“मखंचु जल्दी से एक गढ्ढा खोदो उसी गढ्ढे में हम इस चना को छिपा देते हैं रात होते ही हम दोनों आकर ले जायेंगे”-सखंचु ने कहा।
“हाँ भइया” गढ्ढे की खुदाई करते हुए मखंचु ने कहा।
    उसी गढ्ढे में चना को ढक कर दोनों कंधे पर हल जुवाठ पैना लिए मालिक के घर पहुँचा कर अपनी मजदूरी लेकर अपने घर चले गये।सोचने लगे अब चना कैसे लाया जाय। रात ढलती जा रही थी अंधेरा का पहरा बढते जा रहा था पशु पक्षी मनुष्य अपने- अपने घर चले गये। सभी रास्ते सिवान पशु पक्षी मनुष्य रहित हो गये।इसी का फायदा उठाते हुए मखंचु और सखंचु दोनों दबे पाव गांव से उस चने की खेत की ओर निकल पड़े।खेत पर पहुंचने के बाद उस चने वाले गढ्ढे को खोजने लगे……
“मखंचु कहाँ छिपाया था चना को”- सखंचु ने पुछा।
“ढूंढ रहे हैं भइया मिल नहीं रहा है जरा माचिस की तिल्ली जलाइये न”-मखंचु ने कहा।
“अरे नहीं भाई तिल्ली जलाने पर दूर तक लोगों को दिखाई देगा और हम पकड़े जायेंगे”-सखंचु का जबाब।
“जाड़ा का दिन है भइया सब के सब ओढना और विस्तरा के साथ सो गये होंगे, इसलिए निश्चिंत होकर प्रकाश देखाइये।-मखंचु बोला।
        पुरा खेत को ढूंढ डाला कई चक्कर पे चक्कर लगाया दोनो भाई थक चुके थे। आशा और निराशा को पाने की होड़ में गलत सोच रखने वालों के हाथ में निराशा ही साथ देती है। अंततः निराश होकर दोनों उसी रात अपने घर आकर अफसोस करने लगे,गलत काम का गलत नतीजा होता ही है।
          खेतों में चना का अंकुरण होने लगा थोड़े दिनों में चना का पुरा खेत नवअंकुर बन निकलने लगे। एक दिन अचानक खेत मालिक राम सिंह अपने खेत पर घूमते हुए पहुंच गए।अचानक उनकी निगाह उस जगह पंहुची जहां आपस मे बहुत सारे नवोदित अंकुर आगे बढने के लिए एक दूसरे पर चढे हुए हैं। उन्हें संदेह हुआ और वहाँ खुदवाया तो एक बोरी चना छिपाया गया था। जिससे जमींदार साहब तिलमिला कर दोनों भाई को अपने दरवाजे पर बुलवाया।
“क्या रे मखंचु सखंचु इ खेत में इतना सारा चना एक ही जगह कहाँ से आ गया”- डाटते हुए राम सिंह ने पूछा।
“न…ही मा..लि..क नहीं …..हम ही दोनों भाई उसे चोरी की भावना से छुपा दिये थे लेकिन वो हमे मिल नही पाया ओर  उसी खेत में छुट गया था”-डरे सहमे से आवाज़ में सखंचु का जबाब था।
“तुम दोनों ने अन्न का अपमान किया है इसलिए सजा तो मिलेगी ही।” आग बबूला होकर बोले राम सिंह ।
“जरा कोड़ा तो लाओ”- अपने नौकर को आवाज़ देते हुए।
      पाँच-पाँच कोड़ा लगाते हुए दोनों भाइयों के उपर उतने चना का अन्न दण्ड भी लगाये। और कहे बुरा काम का बुरा परिणाम तो भुगतना ही होगा हर इंसान को चाहे इंसान के हाथों से भुगते या भगवान के हाथों भुगते।…

#रमेश कुमार सिंह ‘रुद्र’ 

परिचय -:
➡ पूर्ण नाम~ रमेश कुमार सिंह 
➡साहित्यिक उपनाम~ ‘रुद्र’  
➡वर्तमान पता~  रोहतास बिहार -८२११०४
➡स्थाई पता~ कैमूर बिहार -८२११०५
➡पूर्ण शिक्षा~ डबल एम.ए. अर्थशास्त्र, हिन्दी एवं बी.एड.
➡कार्यक्षेत्र~ माध्यमिक शिक्षक बिहार सरकार
➡सामाजिक गतिविधि~ साहित्य सेवा के रुप में – साहित्य लेखन के लिए प्रेरित करना एवं सह सम्पादक “साहित्य धरोहर” अवध-मगध साहित्य मंच (हिन्दी)
“साहित्य सरोज पत्रिका” का प्रदेश प्रभारी (बिहार)
लेखन विधा~ छन्द मुक्त,नई कविता, हाइकु, गद्य लेखन मुख्य रुप से वैसे कुछ छन्दमय रचनाएँ भी करतें हैं 
➡ लेखनी का उद्देश्य~ हिन्दी भाषा का प्रचार-प्रसार करना, हिन्दी साहित्य की ओर समाज का झुकाव।
➡सदस्यता/सहयोग निधि~ कई साहित्यिक संस्थाओं में  वार्षिक, द्विवार्षिक चार वार्षिक सदस्यता प्राप्त।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

चाचा

Wed Nov 14 , 2018
बाल दिवस विशेष……………….. एक चाचा की चाह में, बचपन खो गया भूखे है इस तरह की,संस्कार खो गया नवीनता तुम्हें मुबारक शालीनता लौटा दो बस एक बार मेरा चाचा लौटा दो। चाचा थे आधुनिक भारत के निर्माता विज्ञान प्रोद्यौगिकी के प्यारे समस्त राष्ट्र को चमका गए विलासिता के उपकरणों से […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।