मेरे अंतस्थल में जो है
संवेदनाओं का ताना-बाना
तुम्हारा ही तो है बुना
मैं तो निपट था अनजाना.
मैं ठिठुरती सर्दी-सा,
था बहुत सहमा-सहमा,
कड़क कॉफी की महक-सी
तुम ,मेरे भीतर गई समा.
नाजुक उंगलियों की छुअन तेरी
भर गई मुझमें चिर नरम -सिहरन
कहने का अंदाज़ नया वो
वो भोला -सा अपनापन.
पलकों के बंद कपाटों में
बेरोक तेरा आना- जाना.
भूल कहां पाया अब भी
दिन-रात तुम्हारा मुसकाना.
दिन बदले, दुनिया बदली
बदल गई तकदीरें भी.
मेरे जज़्बातों से खेलकर
तुम भी हो कुछ यूं बदली
नाम उछाल सरेआम हमारा
‘मी-टू’ सबसे हो कहती.
#पूनम कतरियार, पटना
Read Time52 Second
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
Next Post
प्यारी है बेटियां
Fri Nov 2 , 2018
पढ़ लिख कर नाम अब तो कमाती है बेटियां, हर गुण में आगे बढ़ती बढ़ाती है बेटियां, जीवन के सुख-दुःखों में हाथ बढ़ाती है बेटियां, माता-पिता का ध्यान सदा रखती है बेटियां । रिश्तों को बखूबी से निभाती है बेटियां, ससुराल और माइका चलाती है बेटियां, रिश्तों के डोर […]

पसंदीदा साहित्य
-
August 29, 2019
कुण्डलिया छंद विधान
-
June 5, 2023
कहानी- बूढ़े होते किस्से
-
February 17, 2019
प्यार
-
March 14, 2018
सुख