जोकर,
एक असाधारण व्यक्तित्व का..
साधारण-सा नाम,
शायद इसीलिए आसान नहीं होता..
जोकर हो पाना,
वैसे कोई चाहता भी नहीं
जोकर बनना,
जोकर कहलाना,
क्यूंकि,
हर कोई चाहता है
खिलखिलाना-मुस्कुराना..
पर दूसरों पर,
खुद पर हँसने
और
खुद पर हंसाने का माद्दा
हर किसी में नहीं होता
और जिसमें होता है
वही जी पाता है
अपने अंदर जोकर को।
वो अपने अंदर,
गहरे समुंदर-सा दर्द समेटे
मुस्कुराता है,
उल्टी-सीधी हरकत करता है..
कभी गिरता है,
तो कभी उठते हुए लड़खड़ाता है..
सिर्प इसलिए,
कि उसे देख
हँस सकें लोग।
अपने अंदर उफनते आँसू को,
आँख गीली करने की..
इजाजत नहीं देता,
क्योंकि वह जानता है
कि,
वो रोया तो, जमाना रोएगा..
लेकिन ये उसके वजूद का
हिस्सा कहाँ है,
वो तो बना ही होता है..
दूसरों को हँसाने के लिए।
वैसे भी वो जानता है,
जोकर के साथ जो करता है..
मजाक ही करता है,
उसके साथ हँसता है,
मुस्कुराता है,
खिलखलाता है,
फिर चला जाता है कहीं,
पलट कर कोई नहीं देखता..
किस अँधेरे से घिरे
चबूतरे के नीचे,
जोकर दहाड़ मारकर
रो रहा है..
शायद इसलिए,
कि जोकर के साथ रोने का
रिवाज है ही नहीं,
वो तो बना ही होता है..
केवल हँसाने के लिए…।
#रविंद्र नारोलिया
परिचय : इंदौर(मध्यप्रदेश) के परदेशीपुरा क्षेत्र में रविंद्र नारोलिया रहते हैं। आपका व्यवसाय ग्राफिक्स का है और दैनिक अखबार में भी ग्राफिक्स डिज़ाइनर के रुप में ही कार्यरत हैं। 1971 में जन्मे रविंद्र जी कॊ लेखन के गुण विरासत में मिले हैं,क्योंकि पिता (स्व.)पन्नालाल नारोलिया प्रसिद्ध कथाकार रहे हैं। आप रिश्तों और मौजूदा हालातों पर अच्छी कलम चलाते हैं।
You are great N great thoughts, I solute
बहुत खूब !