पहले खुद रंग आना जी,
फिर मुझे रंग लगाना जी।
श्याम रंग में —मैं रंगी हूँ,
दूजा न रंग चढ़ाना जी।
प्रेम का मुझे नशा चढ़ा है,
मुझे ना देना — ताना जी।
गीता-सा जो ज्ञान देवे,
वही है —- मेरे कान्हा जी।
बड़े जतन सेे आग बुझी,
फिर न इसे जलाना जी।
मन है शुद्ध-उच्च विचार,
फिर क्यों गंगा नहाना जी।
ईश्वर तेरे ह्रदय कमल में,
नहीं —–उसे पहचाना जी।
जहाँ नहीं,वहाँ उसे खोजे,
भ्रमित ये सारा जमाना जी।
सुख-दुख दोनों अस्थिर हैं,
ह्रदय न अपना गलाना जी।
आत्मतत्व जो जान गया है,
फिर क्या उसे पढ़ाना जी।
खुला छोड़ दो हर ‘परिन्दा’,
पिंजरा न कोई लाना जी।
#रामशर्मा ‘परिन्दा’
परिचय : रामेश्वर शर्मा (रामशर्मा ‘परिन्दा’)का परिचय यही है कि,मूल रुप से शासकीय सेवा में सहायक अध्यापक हैं,यानी बच्चों का भविष्य बनाते हैं। आप योगाश्रम ग्राम करोली मनावर (धार, म.प्र.) में रहते हैं। आपने एम.कॉम.और बी.एड.भी किया है तथा लेखन में रुचि के चलते साहित्य