सरकारी रेट

0 0
Read Time7 Minute, 29 Second

 

umesh kumar sharma

घूरन की आँखें खुली तो धान के दो बोरे गायब थे। दो दिनों की माथापच्ची,दलालों की चिचौरी और ठेकेदारों तथा खरीदारों की घिनौनी हरकत ने उसे इस कदर थका दिया कि रात बैठे-बैठे ही उनकी आँंखें लग गयीं। गोनर ने कब राजा सल्हेश का किस्सा खतम किया,उसे कुछ भी पता नहीं। घूरन बोरे की छल्ली पर से नीचे कूद गया।

दोनों बैंल अपने गोस्तर का पुआल चट कर अपने राग में थुथून घुसेरकर फों-फों कर रहे थे। कठही गाड़ी अपनी जगह सलामत थी।

घूरन को कुछ नहीं फुरा रहा था। उसे क्या पता था कि सरकारी रेट से धान बेचना इतना मँहगा पड़ेगा। नहीं ंतो वह सात कोस जमीन गाड़ी हॉंककर क्यों लाता? उसे तो लगा कि गाँंव का खुदरा खरीदकर किसानों से अनाज औने पौने दामों पर लेता है, कुछ नगद कुछ उधार। सरकारी रेट से धान बिकने पर नगद पैसा मिलेगा, जिससे वह बाकी-बकाया चुकाकर रब्बी की फसल में समय से खाद-पानी डाल सकेगा,परंतु दुर्भाग्य प्रेत की तरह उसका पीछा कर रहा था।

इन दो दिनों में उन्हें पता चल गया था कि निरीह किसानों को लूटने वाले सभी जगह घात लगाए रहते हैं।

सरकार द्वारा प्रत्येक ब्लॉक में शिविर लगाकर धान की नगदी खरीद का समाचार पाकर घूरन गदगद था,परंतु यहाँं आते ही पता चला कि सरकारी खजाना खाली हो गया है। माल आने में तीन दिन लगेंगे। घनश्यामपुर ब्लॉक का पूरा फिल्ड ट्रैक्टर,टायरगाड़ी और कठही गाड़ी से खचाखच भरा था। इस बीच घूरन ने भी अपने मीता गोनर की कठही से सटाकर गाडी़ लगा दिया।

किसानों में आक्रोश था -‘क्या नखरा है? लोग यहाँ कब तक सरकारी माल आने का इंतजार करेगा? दूर-दूर से किसान यही सोचकर आये थे  कि वे अपना माल बेचकर शाम तक वापस हो जाऐगें। पर जो नसीब में लिखा था, वह कौन बाँंट लेता?

इस बीच दलालों ने भी अपने पैतरे खूब आजमाए। सरकारी रेट अठारह सौं का कि्ंवटल और दलाल किसानों को चकमा देकर तेरह सौ में माल पटाना चाहते थे। ‘धान में ज्यादा नमी है……………दो आना खखरी है……….दो आना धूल है’ आदि कहकर उसने कई किसानों को अब तक उल्लू बना लिया था, परंतु घूरन अपनी जगह खंभा गाड़े था। वह धान बेचेगा तो अठारह सौ का ही। कोई किराए की गाड़ी नहीं है। अपना है। गोनर उसका लंगोटिया यार था, जिसपर उन्होंने अठारह सौ का भूत चढ़ा दिया था।

दो बौरे धान की चोरी होने पर घूरन की हिम्मत पस्त हो गयी। अब तो वह अठारह सौ का धान बेचेगा, तब भी हर-दर तेरह सौ का रेट ही हाथ में आएगा। गोनर घूरन को बोल-भरोस देने लगा-‘‘क्या करोगे मीता, अपने नसीब में यही लिखा था। नसीब अच्छा होता तो हम दोनों भी सरकरी मास्टर होते।’’

घूरन चुप था। सरकारी मास्टर तो वह सही में होता, लेकिन कपार में घुरघुरा काटे था। पन्द्रह सौ का वेतन सुनकर मास्टरी को लात मार दिया । आज बीस हजार पाता। दूसरी ही सेखी होती। वह हिम्मत बांँधकर कहा-‘‘दो बोरा धान ले गया, हमारा कपार नहीं ले गया। चोर साला चोर ही रहेगा।’’

सरकारी खजाने में माल आ गया। किसानों के चेहरे खिल उठे। दलालों की हिम्मत पस्त हो गयी। दलालों के हाथ धान बेच देने वालों का मू लटक गया।

हाकिम की टेबुल तक लोग चींटी की भाँति कतारबद्ध हो गये। मुंशी जी नगदी लेकर बैठे थे। पीछे दो बंदूकधारी तनकर खड़े थे। जरा-सा हिला कि सूट।

धान में धूल,खखरी और नमी के नाम पर यहाँ भी दस परसेंट काटा जा रहा था, जिसके कारण किसान परेशान थे।

घूरन की बारी आ गई। धान का कुल वजन ग्यारह कि्ंवटल,धूल, नमी और खखरी एक कि्ंवटल बीस किलो, बाँंकी बचे नौ कि्ंवटल अस्सी किलो। कुल राशि-17,640रु0। पार्किंग -चार्ज-300रु0। शेष बचा-17,340रु0।

17,340रु0 हाथ में आते ही घूरन का देह सुन्न हो गया। मानो किसी ने उसे कफन की कीमत थमा दिया हो क्रोध से उसके त्रिनेत्र खुल गए, जो खिड़की के पार चली गई, जहाँं उसके दोनों बौरे लावारिश की तरह पड़े़ थे। घूरन कुछ  बोलता कि लाईन में लगे लोगों ने उसे धकेलकर बाहर कर दिया।

घूरन के भीतर की धधकती हुई आग को परिस्थिति ने शांत कर दिया। उसने गाड़ी जोतकर बैलों को पीट दिया। बैल सरपट गाड़ी लेकर भागे जा रहे थे, फिर भी घूरन रह-रह कर उन्हें पीट देता था। गाड़ी के घूमते हुए काठ के पहिये के साथ घूरन अपने भविष्य से दूर होता जा रहा था। अधपक्की सड़क पर काठ के पहिये के खट-पट की आवाज से रात की निर्जनता भंग हो रही थी। यह आवाज सड़क के खरंजे से आ रही थी,या बैलों के खुर से या फिर पहिये पर चढ़े हुए लोहे के हाल से,कुछ समझ में नहीं आ रहा था। फिर वह गाड़ी रोककर हाल को टटोलने लगा। सब ठीक था। हाल तो शायद उनकी उम्मीदों और आशाओं पर से उतर गया था।

सूरज की लालिमा के साथ ही वह गाँव की सीमा में प्रवेश कर गया। सड़क के दोनों ओर उसके ही खेत थे, जिसमें गेंहूँ और सरसों की लगी फसलें खाद और पानी की ताक में थीं। सरसों पीले-पीले फूलों से लद गये थे। घूरन का मन खिसिया गया। उसने सिलेबिया बैल की रस्सी तान कर गाड़ी को खेत में उतार दिया। वह पहियों और बैलों के खुर  से पूरे खेत को रौंद देना चाहता था। लेकिन गाड़ी अभी दस कदम ही आगे बढ़ा था  कि वह बैंलों की रस्सी तान कर नीचे कूद पड़ा तथा बैलों को गरियाते हुए गेहूँ और सरसों के टूटे-अधटूटे पौधे की जड़ों में मिट्टी थोपकर सीधा करने लगा। उनकी आँंखें भर आयीं, मानों वह भूख और प्यास से बिलबिलाते हुए असंख्य बच्चें का असहाय बाप हो।

उमेश कुमार शर्मा

दरभंगा(बिहार)

                              

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

हिंदी के कुँवर, कुँवर नारायण !

Wed Sep 19 , 2018
हिंदी के कुँवर, कुँवर नारायण ! “हवा और दरवाज़ों में बहस होती रही, दीवारें सुनती रहीं। धूप चुपचाप एक कुरसी पर बैठी किरणों के ऊन का स्वेटर बुनती रही। सहसा किसी बात पर बिगड़ कर हवा ने दरवाज़े को तड़ से एक थप्पड़ जड़ दिया !” शीर्षक ‘कमरे में धूप’ […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।