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मैं राखी हूँ
सदा श्रावण महीने की
पूर्णमासी के दिन
आती हूँ
इसलिए मैं
श्रावणी कहलाती हूँ…..
मैं राखी हूँ…..
आदि काल से
आज तक मैं
भाई-बहन के
पावन रिश्तों को
बांधकर रखी हूँ…..
मैं एक राखी हूँ…..
देश के रक्षक
सीमा पर तैनात
सूरमा सिपाही
उन भाईयों की
मैं रक्षा कवच हूँ…
मैं राखी हूँ….
दुष्ट पाषाण के हाथों से
बेबस बहनो की
आबरू सलामत
रखने का
वादा हूँ….
मैं राखी हूँ….
हो सकती हूँ
कभी कच्चे धागे की
कभी रेशमी
सोने-चांदी के
जैसी भी हूँ
सच्चे रिश्तों की
पक्के बंधन की
मैं रक्षाबंधन हूँ……
#वाणी बरठाकुर ‘विभा’
परिचय:श्रीमती वाणी बरठाकुर का साहित्यिक उपनाम-विभा है। आपका जन्म-११ फरवरी और जन्म स्थान-तेजपुर(असम) है। वर्तमान में शहर तेजपुर(शोणितपुर,असम) में ही रहती हैं। असम राज्य की श्रीमती बरठाकुर की शिक्षा-स्नातकोत्तर अध्ययनरत (हिन्दी),प्रवीण (हिंदी) और रत्न (चित्रकला)है। आपका कार्यक्षेत्र-तेजपुर ही है। लेखन विधा-लेख, लघुकथा,बाल कहानी,साक्षात्कार, एकांकी आदि हैं। काव्य में अतुकांत- तुकांत,वर्ण पिरामिड, हाइकु, सायली और छंद में कुछ प्रयास करती हैं। प्रकाशन में आपके खाते में काव्य साझा संग्रह-वृन्दा ,आतुर शब्द,पूर्वोत्तर के काव्य यात्रा और कुञ्ज निनाद हैं। आपकी रचनाएँ कई पत्र-पत्रिका में सक्रियता से आती रहती हैं। एक पुस्तक-मनर जयेइ जय’ भी आ चुकी है। आपको सम्मान-सारस्वत सम्मान(कलकत्ता),सृजन सम्मान ( तेजपुर), महाराज डाॅ.कृष्ण जैन स्मृति सम्मान (शिलांग)सहित सरस्वती सम्मान (दिल्ली )आदि हासिल है। आपके लेखन का उद्देश्य-एक भाषा के लोग दूसरे भाषा तथा संस्कृति को जानें,पहचान बढ़े और इसी से भारतवर्ष के लोगों के बीच एकता बनाए रखना है।
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Sun Aug 26 , 2018
नम आंखों से तुझे दुआ दूँ भईया कैसे तुझे भुला दूँ ये राखी जब भी आती है आँखे मेरी भर जाती है फिर भी मन को समझाती हूँ रोते रोते मुस्काती हूँ याद तुम्हारी जब आती है दिल को कितना तड़पाती है रोली तिलक लगाऊ कैसे दूर बहुत हूँ आऊँ […]