1.
पून्यू भादौ मास में, राखी को त्यवहार।
भाई को रक्षा बचन,बहना को अतबार।।
2.
बिषनू पत्नी लिच्छमी ,कहि नारदमुनि साय।
बलि को राखी भेजकर,बिष्नु को संग लाय।।
3.
रीत सनातन सूँ चली, भाइ- बहन रो प्यार।
सांसारिक की रीत छै, परिवारिक व्यवहार।।
4.
सरवण पूजन भी हुवै, राखी रै त्यवहार।
दरवाजै दोनी तरफ ,सरवन री मनवार।।
5.
कर्मवती मेवाड़ की, भेजी राखी डोर।
लाज हुमायू नहि रखी, बनती बाताँ और।।
6.
दिवस संस्कृत भी मनै,राखी कै दिन वार।
पावन भादौ लागतै , त्यवहारी मनवार।।
7.
खेताँ मैं मक्का हँसे, घर मैं सग परिवार।
पावस रुत मैं मौज छै, राखी कै त्यवहार।।
8.
बहन कहै युँ भाई नै, सुण बीरा तू बात।
पहली राखी फौज की,दूजै पेड़ बँधात।।
9.
फिर थारै राखी बँधै , टप्पा ढाई बात।
नवयुग मैं नवरीत छै,प्राकृत देश सँगात।।
10.
कृषक और मजदूर कूँ ,राखी की सौगात।
पकवानों की मौज हो, राखी संगति बात।।
11.
राखी बांधू देश री, भारत माँ रै चित्र।
उणनै भी मै भेज दूँ ,जे भारत रा मित्र।।
12.
राखी गंगा यमुन की,सागर गगन चढाय।
चन्द सूर अपनी धरा, प्राकृत बांधू गाय।।
13.
राखी जननी मात की,भैण भुवा संग भात।
रीत प्रीत री डोर है , सनातनी सौगात।।
14,
पशुधन,और किसान कूँ, कैदी दीन बीमार।
बटुक संत फकीर सब, राखी पर सतकार।।
15.
मानवता हित देश रै ,जे कूँ साँची प्रीत।
राखी बांध बणाइलूँ , मैं तो साँचो मीत।।
16.
राखी बंधण प्रीत रो ,छै साँचो परतीक।
राखी तो राखी भली, न राखी तो ठीक।।
17.
देश और परदेश मैं, हिन्दवाणि रीवाज।
सब जग राखी भेज दूँ, प्रीत रीत परवाज।।
18.
सुणो,सभी या अरज कूँ,भारत का नर नार।
देश रुखाल़ी कारणै , बंधण सूतर धार।।
19.
सरजीवी निरजीव सग,मानव रै हित लाग।
राखी रा हकदार छै, आन मान अरु पाग।।
20.
नित रोजन त्यवहार छै,नित ही मंगलाचार।
प्रीत प्रेम परतीत रो, राखी छै ब्यवहार।।
21.
राखी री बाताँ घणी,कही,सुणी कर माफ।
शरमा बाबू लाल रा, हिवड़ो भाँया साफ।।
नाम– बाबू लाल शर्मा
साहित्यिक उपनाम- बौहरा
जन्म स्थान – सिकन्दरा, दौसा(राज.)
वर्तमान पता- सिकन्दरा, दौसा (राज.)
राज्य- राजस्थान
शिक्षा-M.A, B.ED.
कार्यक्षेत्र- व.अध्यापक,राजकीय सेवा
सामाजिक क्षेत्र- बेटी बचाओ ..बेटी पढाओ अभियान,सामाजिक सुधार
लेखन विधा -कविता, कहानी,उपन्यास,दोहे
सम्मान-शिक्षा एवं साक्षरता के क्षेत्र मे पुरस्कृत
अन्य उपलब्धियाँ- स्वैच्छिक.. बेटी बचाओ.. बेटी पढाओ अभियान
लेखन का उद्देश्य-विद्यार्थी-बेटियों के हितार्थ,हिन्दी सेवा एवं स्वान्तः सुखायः