सम्भावना

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prabha mujumdar

थामे रखनी है

अपने हाथों मे एक मशाल

ताकि गुजर सकें

वक्त-बेवक्त अकेले

अन्धी सुरंगो से होकर

बेखौफ़.

षडयंत्रो से

परिचित हो कर भी

दिख सके निश्चिंत

बना कर रखनी है

खुद अपने लिये सुरंगे

जो निकाल सके

सही वक्त पर

लाक्षागृहो से.

अपने ही प्रयासो से

पाने होंगे मंत्र

रथी-महारथियो के रचे

चक्र-व्यूहों को

सुरक्षित भेद सकने के लिये.

रखना  होगा

थोडी सी हंसी और

उल्लास को बचा कर

विषाद और आंसू की

वैतरणी को

पार कर सकने के लिये.

बचा कर रखने होंगे

कुछ अंकुर

सृष्टि के अंत तक

फिर नये जीवन की

सम्भावना के लिये.

 

प्रभा मुजुमदार

मुंबई(महाराष्ट्र)
3 कविता संग्रह ‘अपने अपने आकाश’ (2003), ‘तलाशती हूँ जमीन’ (2010) एवं ‘अपने हस्तिनापुरों में’ (2014) प्रकाशित.
समकालीन भारतीय साहित्य, नवनीत, वागर्थ, अक्षरपर्व आदि साहित्यिक पत्रिकाओं मे प्रकाशन। पुस्तक मेलों, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय गोष्ठियों आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के अलावा साहित्य अकादमी बंगलूर में कविता पाठ. अनेक स्थानीय (स्कूल, अंतर्महाविद्यालय , कॉलेज, ऑफिस) स्तर के अलावा गुजरात साहित्य परिषद द्वारा पुरस्कृत शब्द निष्ठा (अजमेर ) तथा सृजनगाथा सम्मान

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