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रिश्ता न खून का होता है,
न जाति पाति का होता है॥
अमीर और गरीब में न फरक है,
मीत मानता उर पर हक है॥
चाहे आसमान टूट जाए
चाहता है दिल न रुठ जाए॥
भूखा रहकर भूख मिटाता,
कदम-कदम पर कष्ट मिटाता॥
मित्र गुणों को पहचान लेता,
सारे जग को महका देता॥
विपत्ति समय में कांटा बनता,
मित्रता सुमन रक्षा करता॥
मीत नाता कहाँ से आता,
बिन फलाफल नाता निभाता॥
माता-पिता मीत नाता मधुर,
बने रहे आजीवन सुमधुर॥
#सुरेश जी पत्तार ‘सौरभ’
परिचय : सुरेश जी पत्तार ‘सौरभ’ बागलकोट (कर्नाटक) में रहते हैं। शिक्षा एमए,बीएड,एम.फिल. के साथ ही पी .एचडी.भी है। आप मूलतः हिन्दी के अध्यापक हैं और कविता-कहानी लिखना शौक है। नागार्जुन के काव्य में शोषित वर्ग सहित कई पत्रिकाओं में आलेख,कविताएँ,कहानी प्रकाशित हैं।
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