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देख रही हूँ आखों में सपने इन को हकीकत का नाम दे दो
जमीन तो तुम दे नहीं सकते बस मेरे हिस्से का आसमान दे दो
हर युग में छली गई फिर भी सहती गई हूँ
बहुत हो गई अग्नि परीक्षा, अब तो इनका परिणाम दे दो
बस मेरे हिस्से का आसमान दे दो
गृहस्थी की गाडी खीँच रही कंधे से कन्धा मिला
मेरे किये त्याग को अब तो सम्मान दे दो
बस मेरे हिस्से का आसमान दे दो
घर की इज़त के नाम पर छीन ली मेरी आज़ादी
ज्यादा नहीं मांगती हर्ष सिर्फ मुझे वो पुरानी शाम दे दो
बस मेरे हिस्से का आसमान दे दो
#प्रमोद कुमार “हर्ष”
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