गुरु-शिष्य का रिश्ता 

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ravi rashmi
जाति-पाति को छोड़कर,गुरु देते हैं ज्ञान,
साथ ही करते हैं दूर,आरक्षण का अज्ञान।
हौंसले बुलंद हों शिष्य के,ऐसी प्रेरणा देते हैं,
अबोध शिष्य के दिल की बात,तुरंत जान लेते हैं।
गुरु और शिष्य का,बहुत ही पावन नाता है,
ज्ञान ग्रहण कर शिष्य,बड़े-बड़े पद है पाता।
गुरु का पद है बहुत महान,पूजा है जिसे जाता,
दौड़ा आता मिलने शिष्य,गुरु याद है जब आता।
कर्मठ गुरु अपने शिष्यों को,कर्मठ बहुत बनाता है,
प्रेरित कर-कर शिष्य को गुरु,सफलता के शिखर चढ़ाता है।
जीवन गुरु और शिष्य का,एक-दूजे के बिना अधूरा,
ज्ञानवान बन शिष्य दे,इज़्ज़त-मान तो,  ध्येय होता पूरा।
माता जीजा के गुरु-ज्ञान से,शिवाजी बने महान,
धनुर्विद्या सीखी गुरु मान तो,एकलव्य ने दिया अँगूठा दान।
मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने,जो गुरु वशिष्ठ से शिक्षा पाई,
हर्षित हो छोड़ा महल,तात-आज्ञा की आन निभाई।
गुरु द्रोणाचार्य की शिक्षा से,अर्जुन ने लक्ष्य साधा,
आँख भेद कर की पास परीक्षा,दूर कर दी हर बाधा।
प्रणाम गुरु को,नमन गुरु को शिष्य सुधी का,
गुरु जी का रिश्ता रख कायम,परिष्कार करो बुद्धि का॥
          #रवि रश्मि ‘अनुभूति’

परिचय : दिल्ली में जन्मी रवि रश्मि ‘अनुभूति’ ने एमए और बीएड की शिक्षा ली है तथा इंस्टीट्यूट आॅफ़ जर्नलिज्म(नई दिल्ली) सहित अंबाला छावनी से पत्रकारिता कोर्स भी किया है। आपको महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार,पं. दीनदयाल पुरस्कार,मेलवीन पुरस्कार,पत्र लेखिका पुरस्कार,श्रेष्ठ काव्य एवं निबंध लेखन हेतु उत्तर भारतीय सर्वोदय मंडल के अतिरिक्त भारत जैन महामंडल योगदान संघ द्वारा भी पुरस्कृत-सम्मानित किया गया है। संपादन-लेखन से आपका गहरा नाता है।१९७१-७२ में पत्रिका का संपादन किया तो,देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गीत,ग़ज़ल,कविताएँ, नाटक,लेख,विचार और समीक्षा आदि निरंतर प्रकाशित होती रही हैं। आपने दूरदर्शन के लिए (निर्देशित नाटक ‘जागे बालक सारे’ का प्रसारण)भी कार्य किया है। इसी केन्द्र पर काव्य पाठ भी कर चुकी हैं। साक्षात्कार सहित रेडियो श्रीलंका के कार्यक्रमों में कहानी ‘चाँदनी जो रूठ गई, ‘कविताओं की कीमत’ और ‘मुस्कुराहटें'(प्रथम पुरस्कार) तथा अन्य लेखों का प्रसारण भी आपके नाम है। समस्तीपुर से ‘साहित्य शिरोमणि’ और प्रतापगढ़ से ‘साहित्य श्री’ की उपाधि भी मिली है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘वुमन आॅफ़ दी इयर’ की भी उपाधि मिली है। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में प्राचीरों के पार तथा धुन प्रमुख है। आप गृहिणी के साथ ही अच्छी मंच संचालक और कई खेलों की बहुत अच्छी खिलाड़ी भी रही हैं।

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