बारिश

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sushil duggad
चल रही है झूम के हवाएं,
बादलों ने शोर मचाया है ।
बदला सा मिजाज मौसम का,
कोई दस्तक देने आया है ।।
रंग बदला है पत्तो ने अपना,
पेडों ने गीत गुनगुनाया है ।
डाली डाली चहक रही,
आनन्द हृदय में समाया है ।।
सौंधी सौंधी खूश्बु माटी की,
हर महक फीकी पड़ जाती है ।
माटी अपने माटी होने का,
अज़ब एहसास कराती है ।।
मदमस्त होकर मयूर भी,
मनमोहक नृत्य बता रहे ।
पी हू पी हू करते पपीहा भी,
अपनी खुशियाँ जता रहे ।।
गर्म हवाओं के थपेड़ो ने,
जीवन को मानों पस्त कर दिया ।
थम सा गया था जैसे समय,
सब कुछ अस्त व्यस्त कर दिया ।।
ऐसे में राहत देने तन मन को,
फिजाओं ने कदम बढ़ाया है ।
काली घटाओं ने घेरा सूरज को,
उमड़ गुमड़ सावन आया है ।।
चमक उठी बिजली नभ में,
टप टप बूंदों ने मन हर्षाया है ।
रंग बदला प्रकृति ने अपना,
अदभुत सा दृश्य सर्जाया है ।।
खिल उठे है चेहरे सारे,
खुशियों का सागर बोल रहा ।
बच्चों की बस्ती में छायी मस्ती,
हर कोई मस्ती में डोल रहा ।।
तन मन को “स्पर्श” करती बारिश,
सन्देश जीवन का कह जाती है ।
अनगिनित आशाएँ जगाती बुँदे,
सृष्टि को नव जीवन दे जाती है ।।
#सुशील दुगड़ “स्पर्श”
अंकलेश्वर(लुहारिया)

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