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“सच कहूं
तब मन बिखर जाता है ।।”
जब अंदर से कुछ कहना हो ।
अनकही कसक को सहना हो।
सब कुछ छूट जाने पल हो ।
बिखरता आज और कल हो ।
“सच कहूं
तब मन बिखर जाता है ।।”
जब दवा भी ज़हर का प्रकार हो
कुछ अपनों की दुआएं बेकार हो ।
जब ठीक करने का भी प्रयास हो
पर निकलने की न कोई आस हो
“सच कहूं
तब मन बिखर जाता है ।।”
जब मेरी शाम का ढलना हो
निराशा का सूरज निकलना हो
जब समंदर से लड़कर नॉका पार हो
और किनारों से ही अपनी हार हो ।।
“सच कहूं
तब मन बिखर जाता है ।।”
जब खुद से ही हर पल लड़ना हो ।
हालात दिन ब दिन बिगड़ना हो ।
जब खुद की आंखों को कौंधता प्रकाश हो
अपनी रूह को ढूंढती क्षत विक्षत लाश हो।
तब मन बिखर जाता है ।।
#नीलेश झा ‘नील’
परिचय:
नाम: नीलेश झा ‘नील’
पिता का नाम :श्री बृजेश झा
माता की नाम:श्रीमती शोभना झा
जन्मतिथि : 27 सितंबर 1986
शिक्षा : LLB , MBA, MSC.cs
शिक्षणस्थान:रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय जबलपुर , माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय भोपाल मप्र
संप्रति: अधिवक्ता मप्र उच्च न्यायालय जबलपुर , जिला एवं सत्र न्यायालय मंडला
प्रकाशन:देश की प्रतिष्ठित विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं में नियमित रचनायें एवं समीक्षाएं प्रकाशित!
विधा :- मुक्तक , बाल साहित्य, कविताये, लघुकथा , कहानियां , व्यंग्य , समीक्षाएं, समसामयिक विषयों पर लेख ।।
संपर्क सूत्र: देवदरा मंडला (मध्यप्रदेश)
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Wed Jun 27 , 2018
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