मैं नारी हूँ  

0 0
Read Time13 Minute, 39 Second
shefali varma
मै नारी हूँ, ये अपराध मेरा तो नहीं
हाँ मै नारी हूँ !
तुम्हारी लेखनी ने संस्कृति के उत्कर्ष तक
मुझे पहुंचा दिया
धरती का प्राणी ही नहीं
देवी भी मुझे बना दिया
किन्तु,
तुमने मुझे बना दिया
पातळ की छाती को विदीर्ण करनेवाली
एक चीत्कार
प्रकृति-पटी पर उमड़ती कोसी का
हाहाकार
अधरों पर आता है कभी शरद-प्रात
कभी पूस की सर्द रात
दर्पण में जब भी अपना चेहरा देखती हूँ
सीता की व्यथित परछाही
पलकों की कोर पर थरथरा  जाती है..
मेरा आँचल चाँद तारों से नहीं
राहू केतु  से भर जाता है
किन्तु नहीं अब नहीं….
हवा छू देने से नारी मैली नहीं होगी
नारी समझ गयी हाड मांस से बने इस
देह में कुछ भी नहीं जिससे
तुम बने ,वह बनी
प्रकृति कुसुमार बनी है..
फिर दोषी मै ही क्यों ?
यहाँ कुम्हड़ बतिया नहीं कोई
तर्जनी देख मुरझाने वाली अब हम नहीं
अब जमाना बदल गया
देश की आज़ादी नारी के अंतर में उतर गयी
एक तीव्र धूप नारी के अंतर में फ़ैल गयी
घर बाहर को जगमगाती
आकाश छूने की परिकल्पना से
नव निर्माण के विस्तार में
नवल सूर्योदय भरती
परम्परा-अपरम्परा को ध्वस्त करती  नारी
आज आगे बढ़ रही  है……..
फिर भी उसका समर्पण देखो
सब कुछ सहती
जन्म तुम्ही को देती है
सृजन मै करती हूँ ……
विधाता तुम बन जाते हो
पुरुष विमर्श छोड़ ,
नारी विमर्श की बात करते हो……
          #डॉ शेफालिका वर्मा 
परिचय : शेफालिका वर्मा मैथिली की प्रतिष्ठित लेखिका हैं, जिन्होंने पद्य एवं गद्य की विभिन्न विधाओं में समान रूप से अपनी लेखनी चलाई है। आप हिंदी एवं अंग्रेजी में भी लिखती हैं। एक लेखक, साहित्यकार, सामाजिक प्राणी एवं मित्र-सखा के रूप में शेफालिका जी ने जो सम्मान एवं सराहना अर्जित की है, वह श्लाम्य है।
शेफालिका वर्मा का जन्म बहुत ही सुख-समृद्धि के बीच 9 अगस्त, 1943 को शरतचंद्र के घर के नजदीक बंगाली टोला, भागलपुर में हुआ। आपके पिता श्री ब्रजेश्वर मल्लिक एक अधिकारी और हिंदी के साहित्यकार थे। बचपन से ही आप अपने पिता की लाइब्रेरी में शरत, बंकिम, टैगोर, यशपाल आदि के साथ बड़ी होती रहीं, फिर अज्ञेय, महादेवी, जैनेंद्र, अमृता आदि के साथ यौवन की दहलीज पर पैर रखे। आप बहुत ही भावुकमना थीं। आपकी मित्रता पुस्तकों से ही ज्यादा रही। पिता के दिये संस्कार ‘सबों से प्यार करो, पाप से घृणा करो पापी से नहीं’ ये शेफालिका जी के जीवन के मूलमंत्र बन गए। साहित्य में अभिरुचि आपको अपने पिता से विरासत में मिली थी।
आठ साल की उम्र से ही शेफालिका वर्मा हिंदी में कविता, कहानियाँ लिखा करती थीं, जो चुन्नू मुन्नू, बालक, चंदामामा आदि बाल पत्रिकाओं में छपती थीं। समय के साथ शेफालिका की कविता एक दिन बालक पत्रिका से वापस लौट आई एक टिप्पणी के साथ—अब आपकी कविता में मधुरता आ गई—ये बच्चों के लिये नहीं है। यानी कहने का तात्पर्य था कि आप न बच्चों में हैं, न ही बड़ों में। बाल्यकाल से ही आपके अंदर जो विरहिणी नायिका आ गई थी, वह आज तक आपके अंतर को उद्वेलित करती रही है। आपको लगता, कोई आपको कहीं अदृश्य से पुकार रहा है। कोई भी उदासी भरा गीत सुनती तो छटपटा उठतीं, कहीं उन्हीं के लिये ही हो जैसे। ‘तुम न जाने किस जहाँ में खो गए’ इस गाने पर बाल्यकाल से ही आप फूट-फूटकर रोने लगतीं, जैसे कोई आपको बुला रहा हो। एक ओर तो अपनी रचनाओं में भावुक रहतीं तो दूसरी ओर समाज में फैली बुराइयों के प्रति सख्त प्रतिरोध रहता है।
मैट्रिक पास करने के बाद 15 साल की अल्प उम्र में ही आपकी शादी हुई। शादी से पहले पति का गाना सुनकर ही आप रोने लगतीं, बहुत अच्छा गाते थे वर्मा जी। उनका गाना ‘प्यार पर बस तो नहीं है मेरा, लेकिन तू बता दे कि तुझे प्यार करूँ या न करूँ।’ इस गाने कोदूर से ही सुन आप रोने लगी थीं। प्लेटोनिक प्रेम था आपका, अरेंज्ड के बीच। वर्मा जी ने आपके दिल के दर्द को, छटपटाहट को जाना और आपको लेखन की दिशा में आगे बढ़ाते गए। यही नहीं, उनके एक मित्र रामदेव झा के कहने पर अपने मैथिली में लिखना शुरू कर यिा।
मैथिली में आपकी पहली कविता 1960 में मिथिला मिहिर में प्रकाशित हुई। उस समय आप उत्तर बिहार के सहरसा में रह रही थीं। कहने को तो सहरसा जिला था, कमिश्नरी था। किंतु लोागें की मानसिकता उस समय एक गाँव जैसी ही थी। आपने गाँव में औरतों को गोदाम में रखे अनाज के बोरे की तरह रखा देखा, अस्तित्वविहीन, तभी आपने औरतों के स्वाभिमान को जाग्रत करना शुरू किया। आपको अवसर भी मिला, आप दास वर्षों तक सहरसा नगरपालिका की नगर आयुक्त रहीं। आपने नारियों को सुरक्षित नहीं, स्व-रक्षित होने की प्रेरणा दी, स्वयं निर्णय लेने की क्षमता एवं आर्थिक स्वाधीनता प्राप्त करने को कहा। जे-पी- आंदोलन में आप कितनी ही बार आमरण अनशन पर भी बैठीं। जय प्रकाश नारायण ने स्वयं आपसे अपनी रचनाओं के माध्यम से भी आंदोलन करने को कहा, आंदोलन के बाद आपको विधान सभा का टिकट भी मिला, पर आपने उसे ठुकरा दिया, ये कहकर कि मुझे रागदरबारी एकदम नहीं आती।
मैथिली पत्रिका मिथिला मिहिर में प्रायः हरेक अंक में आपकी कविता-कहानियाँ छपतीं। आपके जीवन में सबसे बड़ा मोड़ तब आया, जब आपको मैथिली विश्व विद्यापीठ, दरभंगा के कुलपति डॉ- दिनराज शांडिल्य ने विद्या वारिधि यानी पी-एच-डी- की मानद उपाधि से सम्मानित किया। उस समय मिथिला मिहिर के होली अंक में रचनाकारों को विनोदपूर्ण उपाधियाँ दी जाती थीं। हर साल आपको कुछ-न-कुछ उपाधि मिलती, किंतु इस विद्या वारिधि की उपाधि के कारण मिहिर ने आपको दिनराजी डॉक्टर की उपाधि दी थी। मैथली संसार में आपको काफी नाम हो गया था। किंतु आप केवल शेफालिका वर्मा, बी-ए- ऑनर्स है। दिनराजी डॉक्टर ने आपके संपूर्ण अस्तित्व को झकझोर दिया था। तब पति की प्रेरणा से आपने अठारह साल उपरांत पुनः अपनी पढ़ाई शुरू की और एम-ए- और पी-एच-डी- उपाधियाँ अर्जित की।
शेफालिका वर्मा का मानना है कि लिखना एक साधना, एक तपस्या है, प्रोफेशन नहीं। जिस तरह प्रसव वेदना से माता छटपट करती रहती है_ और शिशु के जन्म के बाद ही चैन की साँस लेती है। ठीक वही स्थिति रचनाकार की होती है। उसके अंतर में रचना आकार लेने को बेचैन रहती है। जब उसका जन्म कागज के पन्नों पर हो जाता है तो अपने मानस शिशु को देख वह निष्कृति की साँस लेता है। आपके अंदर एक नन्ही-सी शेफाली है, जिसका अपना जीवन है, अपनी दुनिया है, नितांत अपनी— वह अपनी उस दुनिया में अपने मन के अनुसार उछलती है, गाती है—ओवर सेंटिमेंटल होने के कारण आप सदा भावनाअेां में ही बहती रहीं, भावनाओं-कल्पनाओं की दुनिया में रहने के कारण कभी-कभी दुनियादारी में अबूझ पहेली-सी रह जातीं।
आपका रचना-संसार स्त्री सशक्तीकरण की मुखर वकालत करता है। आपके कहानी संग्रह एकटा आकाश की कहानियाँ समाज में स्त्री की जीवन-यात्र के विविध पहलुओं को उजागर करती हैं। आपका उपन्यास नागफाँस एक मनोविश्लेषणात्मक उपन्यास है, जिसमें स्त्री प्रेम एवं उसके जुनून को स्वर मिला है। साथ ही पूर्वी और पश्चिमी सभ्यता, संस्कृति को रेखांकित करते हुए एक संतुलित जीवन-शैली का ———– किया गया है।
शेफालिका जी को मैथिली संसार में मैथिली की महादेवी कहकर अभिहित  किया गया है।
आपकी कविताएँ रहस्यात्मक चेतना से ओतप्रोत हैं। अपनी कविताओं के माध्यम से एक ओर जहाँ आपने नारी वेदना को स्वर दिया है, वहीं आपके विप्रतब्धता तथा मधुगंधी वातास – नामक कविता संग्रहाें से मैथिली साहित्य में नारी विमर्श को नया आयाम मिला है। भावांजलि नामक गद्यगीत कृति की तुलना  रवींद्रनाथ  ठाकुर के गीतांजलि से की जाती है, क्योंकि इसमें आध्यात्मिक चेतना को भावांजलि दी गई है। आपकी रचनाओं के हिंदी, नेपाली, गुजराती, ओडिया, तेलुगु, बांग्ला और अंग्रेजी में अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। आपने हिंदी पत्रिका चमकते सितारे का सह-संपादन तथा मैथिली पत्रिका टटका का संपादन भी किया। आप मिथिलांचन टुडे के संपादन से भी जुड़ी रहीं।
स्मृतिरेखा आपके संस्मरणों का संग्रह है, जिसमें वैयक्तिक संवेदना का मार्मिक स्पर्श दिखाई पड़ता है। इसमें जीवन के विविध आयामों कर प्रतिध्वनियाँ हैं तथा स्त्री की सामाजिक भूमिका का चित्रण करते हुए उसकी परिवर्तनकारी चेतना को रेखांकित किया गया है। संस्मरण लेखन की आपकी प्रवृत्ति में भविष्य में आपको आत्मकथा लेखन की ओर अग्रसर किया।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित आपकी आत्मकथा किस्त-किस्त जीवन की समस्त अनुभूतियों के आधार पर लिखी गई एक विलक्षण आत्मकथा है, जिसमें साहित्यिक दिग्दर्शन, विविध रोचक एवं महत्त्वपूर्ण घटनाओं के साथ लेखिका की स्पष्टता, दृढ़ता एवं निर्भीकता को नारी सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम माना जा सकता है। अनूठी साहित्यिक शैली और अभिव्यक्ति इस कृति की एक और उल्लेखनीय विशेषता है। इसी कड़ी में आपकी दो अन्य आत्मकथात्मक कृतियाँ भी प्रकाशित हुई हैंµआखर आखर प्रीत (पत्रत्मक शैली में) और मोनक चान सुरुज।
शेफालिका वर्मा विभिन्न साहित्यिक, सामाजिक, शैक्षिक संस्थाओं से सक्रिय संबद्ध रही हैं, जिनमें मैथिली-भोजपुरी अकादमी, दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली, बिहार राज्य पाठ्यपुस्तक समिति, कोशी क्षेत्रीय महिला साहित्यिकार संघ, महिला एवं बाल विकास अंतर्राष्टीय मैथिली परिषद, राची, महाकवि आरसी साहित्य परिषद, पटना, चेतना समिति, पटना, अखिल हिंदी भाषा साहित्य समिति आदि शामिल हैं।
शेफालिका वर्मा को उनकी साहित्यिक उपलब्धियों के लिये मिथिला रत्न सम्मान, स्वजन सम्मान, अटल मिथिला सम्मान, साहित्य अकादेमी पुरस्कार सहित अनेक पुरस्कार-सम्मान प्रदान किये गए हैं|

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

नतीजा

Mon Jun 25 , 2018
 कोशिशें हज़ार की पाने की,    तेरी बेरूख़ी नहीं मिटती है ।  नतीजा मिलता नहीं कुछ भी ,  मेरी चाहत यूं ही बिखरती है।।  दिल में तड़प, आंखों में यक़ीं,     अब भी बाकी है ।   तेरी नज़रों से पीते हैं जाम,    तू ही मयक़दा है,साक़ी है […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।