मिसेज अग्रवाल के इकलौते बेटे की शादी थी, शादी का घर और गहमागहमी न हो ऐसा कैसे हो सकता है, तिस पर मिस्टर अग्रवाल शहर के मशहूर व्यवसायी! रिश्तेदारों से घर ठसाठस भरा था, सबके आवभगत की पूरी व्यवस्था थी, उधर खानसामे में गांव से आई कमला( मिस्टर अग्रवाल की चचेरी बहन) रसोइये के साथ लगी पड़ी थी, सारे मेहमानों के नाश्ते खाने की व्यवस्था का जिम्मा उसी का था, सुबह से रात तक वो हंसती खिलखिलाती इस कमरे से उस कमरे सबकी आवभगत करती , बीच बीच मे हंसी ठिठोली करते हुए कभी मंगलगीत तो कभी बन्ना बन्नी गाती रहती थी।
मिसेज अग्रवाल ने मिस्टर अग्रवाल से कहा, सुनते हो जी, भइया की फ्लाइट शाम पांच बजे आनी है, समय से उन्हें रिसीव कर लेना और सुन कमला तुम फटाफट पनीर पकौड़े और कॉफी की तैयारी करो, भइया को पनीर पकौड़े बहुत पसन्द है, कमला सहमति से सिर हिलाकर खुशी खुशी रसोई में चली गयी।
ठीक साढ़े पांच बजे मिसेज अग्रवाल के भइया आ गए, पति पत्नी के साथ उनके इर्द गिर्द सबका मजमा लग गया, कोई उनका अरमानी का सूट निहार रहा था तो कोई उनके एक कान में पड़े हीरे के बड़े बूंदे को..!
मिसेज अग्रवाल खुशी से निहाल थी और गर्वीली मुस्कान के साथ सभी मेहमानों से अपने भाई का परिचय करा रही थीं। तभी कमला ट्रे में पनीर पकौड़े और कॉफी ले कर आई, ये देखते ही मिसेज अग्रवाल भड़क गयीं, कमली! तुम्हे जरा भी अक्ल है या नही, ये क्या बेढंगापन है??? अरे वो जो काजू कतली और पिस्ते का लड्डू था उसे भी ले आना था, सीधे पकौड़े ले आयी मुंह जलाने के लिए… हद्द है! अरे अब खड़ी खड़ी मुंह क्या देख रही है, काजू पिस्ता मिठाई है भी या उसे अपने दोनों पेटुओं(बच्चों) को धीरे से ठुंसा दिया!जाने कहाँ कहाँ से चली आती हैं सब पूरे खानदान के साथ पेट धो पोंछ के!!!!!
कमला की आंखें नम थी और दोनों बच्चे उसके आँचल में सहमे दुबके पकौड़े के प्लेट को ललचाई नज़रों से देख रहे थे…
बाहर बैंड बाजे पर धुन था ,, ठन ठन की सुनो झंकार ,ये दुनिया है काला बाजार, ये पैसा बोलता हैं, ये पैसा बोलता हैं….
#नूतन सिंह ‘शून्य’
परिचय
नाम- नूतन सिंह
साहित्यिक नाम/ उपनाम- शून्य
राज्य- उत्तर प्रदेश
शहर- वाराणसी
शिक्षा- परानास्तक (अर्थशास्त्र)
विधा- लघुकथा, कविता, गजल
कार्यक्षेत्र- गृहणी
लेखन का उद्देश्य- आंतरिक, कालिक और सामाजिक संवेगों और संवेदनाओं को शब्दों के माध्यम से मूर्त और संदेशात्मक रूप देना|