नव पल्लव जैसे खिलते है,, तुम लेती हो अँगडाई। गंध तुम्हारे अंग अंग से, लेकर बहती पुरुवाई। नैन कटीले कजरारे प्रिय ,,, नित बसते है चेतन में। क्षण भर का परिरंभ तुम्हारा,अमृत जैसे मरूवन में। वृत्तपुष्प मकरंद अधर द्वय, ग्रीवा लगे सुराही है। कुंतल स्याह घनेरे बादल ,, राह भटकता […]