पाक को जरा,सब सिखाइए। गीत प्यार के,सरस गाइए॥ शक्तिमान हो,शरण दीजिए। देश द्रोहि के,करम कीजिए॥ प्राण खींच लो,तब सही रहे। बाप हो तभी,जब वही कहे॥ धीर देश है,भरत वीर का। भीष्म पार्थ के,विकल तीर का॥ आँख जो उठे,तुरत नष्ट हो। मौत से मिलो,अगर भ्रष्ट हो॥ सोच लो अभी,समय दे दिया। […]
kumar
मैंने…कब चाही अपने प्रेम की विलक्षण परिभाषा…। कब की…तुमसे मिलन की आशा..। मैंने कब चाहा तुम्हारे, मखमली आलिंगन का अधिकार ..। मैंने..कब चाहा तुमसे, चिर मिलन,समर्पण,या प्यार …। मेरे प्रेम को, नहीं चाहिए, शरीर का आकार…। यौवन का ..,ज्वार…। देह का ….चंदन …। शिराओं का…स्पंदन..। मैं तो प्यासा हूँ, उन्मुक्त […]