‘रिश्ते’ भी ‘रिसते’ हैं, ज्यों पुराने दर्द पुरवैया में टिसते हैं। और तब…उद्वेलित मन में, सागर तरंग-सा अनवरत विगत अनुकूलता के क्षण विवेचनात्मक चिन्तन के भँवर बीच उठते और गिरते हैं॥ प्रचलन से हटे हुए नोट-सा, हारे हुए नेता को किसी वर्ग विशेष का अधिक प्रतिशत प्राप्त वोट-सा, रिश्ता…निरर्थक हो […]