विचित्र विडंबना… कौमार्य को तुमने शरीर तक सीमित कर दिया, कर दिया सीमित अखिल प्रेम.. जो हो सकता था, मेरा प्रेम तुम्हारे लिए। जो सिंदूरी हो सकता था, तुम देखो भीतर मन प्यासा-सा रह गया। भ्रमित-सा, मन का क्षितिज रह गया, शरीर की परिधि तक न स्वीकार करो… समझो तो […]