निराकार साकार सर्वाणि रुपम, प्रियं भक्ति श्रद्धा न दीपम न धूपम। गरल कण्ठ धारी धरे शीश गंगा, बनी कण्ठ कण्ठी वो माला भुजंगा। भलो भाल चँदा है नन्दी सवारी, प्रभु प्यास पूरण करो अब हमारी। बाघम्बरं वस्त्र धारे शरीरं, प्रकल्पं परेशं प्रबद्धी परीशं। गुणी-निर्गुणी और जन्मे-अजन्मे, शवम् की भभूति लपेटे […]