हमें याद रखना चाहिए कि,अँग्रेजी को शेक्सपियर की भाषा के रूप में जानने के बहुत पहले, हमें उसे ईस्ट इंडिया कंपनी की भाषा के रूप में जानना और सीखना पड़ा था। ‘ईश्वर,मेरे मित्रों से मेरी रक्षा करना, क्योंकि शत्रुओं से तो मैं स्वयं निपट लूँगा।’कभी वोल्टेयर,तो कभी नेपोलियन बोनापार्ट के […]
रचनात्मकता,खत्म हुई शायद, नकलों का जहाँ,बोलबाला है। झूठे लोगों की,जय-जयकार, सच्चे का मुँह यहाँ काला है। पंगु जहाँ,चढ़ने लगे पहाड़, सज्जन के,मुहँ पर ताला है। जहाँ बैठे भोले,बने सियार समझो,कुछ गड़बड़ झाला है। जहाँ जीते, हारे बैठे हैं, हारों के गले,विजयमाला है। समझ की बहती,नदी नहीं, समझो,अज्ञान का नाला है। […]