रातें आजकल.. आंतकी…. पथरीली और जहरीली भी हो चली, इन्हीं रातों की सुखद हवाएँ.. अचानक ही बैचेन करती, तीली सुलगाती…। दूभर जीना सहती, कांपती धड़कनें.. रोज सुनाती साँसें कैसा अनायास भय, एक चीत्कार… माहौल नया बनाती जिएं तो कैसे ..? मुश्किल बड़ी…। कब तलक रोके कोई चलती राहों का यूँ […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा