उठो पार्थ, गांडीव उठाओ.. शर संधान करो। सम्मुख जो हैं, सिर्फ शत्रु हैं.. कोई सगा नहीं, अपमानित नारीत्व हुआ.. इनको कुछ लगा नहीं, ये आए हैं रण में केवल.. प्राणहरण करने, या तो तुझे मृत्यु देने.. या स्वंय वरण करने, सोचो मत.. ये पतित प्राण हैं, इनके प्राण हरो। सिर […]
काव्यभाषा
काव्यभाषा
संसार अगर एक रंगमंच है, तो हां, मैं उसका एक पात्र.. मुखौटा,चरित्र,किरदार,अभिनय और भूमिका हूँ। बचपन,जवानी,वृद्धावस्था, के पड़ावों से गुजरती जिन्दगी.. के बीच मैं कब पुत्र से पिता, दादा,नाना,मामा और चाचा.. बन जाता हूँ, कुछ पता ही नहीं चलता। पात्रों की जरूरत के हिसाब से, भूमिकाओं को निभाते-निभाते.. मैं अपने […]