हुआ पतन है संस्कारों का क्रोध बहुत अब आता है। पाखण्डी को देख-देखकर धर्म खड़ा शर्माता है॥ बेच चुके निज आन-बान को,धर्म बेचने वाले हैं। गन्दी मछली के कारण अब नीरकुंड भी नाले हैं॥ हम तो समझा करते थे कि धर्म बचाने आएंगे। पता नहीं,आभास नहीं था इसे बेचकर खाएंगे॥ […]