आज विश्व पर्यावरण दिवस पर आइये अपने आप से कुछ सवाल करें…कि आने वाली पीढ़ी के लिए हम कैसी धरती और कैसा पर्यावरण देने जा रहे हैं…
यह प्रश्न हमारे सामने यक्षप्रश्न बनकर खड़ा है और जब तक हम साथ मिलकर इसका जवाब ढूंढ नहीं लेते तब तक यह दिवस केवल एक जागरूकता दिवस के रूप में सीमित रहेगा… हम इसे उत्सव की तरह नहीं मना पाएंगे…
गंगा समेत देश की विभिन्न नदियों में तमाम उद्योगों और कल कारखानों द्वारा अनेक प्रकार के जहरीले रसायन बेरोकटोक डाले जा रहे हैं। शहरों में नालों का निकास नदियों में कर देना सबसे आसान काम है। महानगरों का सीवर सिस्टम और ड्रेनेज सिस्टम भी आसपास की नदियों को बुरी तरह प्रदूषित कर रहा है। शहर का सारा कूड़ा कचरा भी नदियों के किनारे डम्प कर दिया जाता है। नगर निकायों को भी कचरे के निष्पादन के लिए नदियों का तटवर्ती क्षेत्र सबसे सुरक्षित स्थान नजर आता है।
कई नदियों का जीवन समाप्त होने के कगार पर है। कमोबेश देश के हर छोटे बड़े शहरों में यही तश्वीर दिखाई देती है। लेकिन इसी के साथ साथ नदियों को प्रदूषण से मुक्त किये जाने के लिए गैर सरकारी संगठनों और समाजसेवियों द्वारा आंदोलन भी चलते हैं। देश की कई बड़ी नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं भी चल रही हैं। ‘नमामि गंगे’ जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं भी हैं। देश में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय है। प्रदूषण को रोकने के लिए केंद्र के साथ राज्यों में भी बाकायदा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए देश में कानून है जिसका उल्लंघन किये जाने पर दंड का भी प्रावधान है। इन सब के साथ पर्यावरण संरक्षण के लिए वैश्विक कानून भी है। साथ साथ देश में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा व्यापक रूप से स्वच्छता अभियान भी चल रहा है।
बगैर ट्रीटमेंट प्लांट लगाये उद्योगों को संचालित करना कानूनन जुर्म है। बावजूद इसके अनेक उद्योग धंधे बगैर ट्रीटमेंट प्लांट के चल रहे हैं।
ऐसे में इन सवालों का जवाब ढूंढना जरूरी है…
क्या हमने इस प्रदूषण के विरोध में कभी कोई कदम उठाया है…क्या हमारा स्वच्छता अभियान केवल हमारे घर तक सीमित है… क्या
पर्यावरण से जुड़ी इस समस्या के लिए केवल सरकार या व्यवस्था दोषी है…क्या केवल आज के दिन पौधरोपण के नाम पर या हाथ में झाड़ू उठाकर गली मोहल्ले की सफाई के नाम पर या बैनर और नारों के साथ रैली के नाम पर अपना फोटो सोशल मीडिया में डाल देने से या खबरों में सुर्खियां बटोर लेने से समस्या का हल निकल आएगा…क्या आज आयोजित होने वाली जागरूकता दौड़ में शामिल होकर हमारी सोच बदल जायेगी…सरकार या प्रशासन कोई कदम उठाये, न उठाये, हमारा अपना कोई नैतिक दायित्व बनता है या नहीं…
कब तक ये बड़े बड़े उद्योग जन जीवन को संकट में डालकर अपने निजी फायदे के लिए पर्यावरण और प्राकृतिक संपदाओं का दोहन करते रहेंगे…
आने वाली पीढ़ी कभी हमें माफ नहीं करेगी…
विश्व पर्यावरण दिवस के मौके पर आइए इन विन्दुओं पर सोचें, अपनी मानसिकता को बदलें और अपनी छटपटाहट और अपनी पीड़ा को एक दूसरे के साथ साझा करते हुए अपने संकल्प को और मजबूत बनायें…
#डॉ. स्वयंभू शलभ
परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।