#दिलीप वसिष्ठसिरमौर(हिमाचल प्रदेश)
Read Time59 Second
कितनी मिथ्यावादी होती है न माँयें…
बेटा कोमल ममता को ठुकराता है
तो
चुल्हे पर बैठकर आँसुओं का सारा दोष धूँयें को देती है..
छोडकर दुत्कार कर चला गया साथी..
अन्धाधुन्ध द्रान्ती चलाती
घास काटती माँये
आँसुओं का सारा दोष तिनके को देती है।
कितनी मिथ्यावादी होती है माँयें…
मूँह तरेर गयी हो पढी लिखी बहू
तापडतोड़ छाज चलाती दाल बीनती माँयें
आँसुओं का सारा दोष
कंकड को देती है।।।
कितना झूठ बोलती है माँयें।
एक ही रोटी बचने पर
भूख न लगने का नाटक करती है मायें।
बहुत झूठ बोलती है माँयें
बेटों से अपना दर्द छुपाती है माँयें
Average Rating
5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%
पसंदीदा साहित्य
-
December 15, 2017
राधा को देख कृष्ण का मन डोला
-
March 25, 2021
स्वयं से स्वयं की परिचर्चा !
-
October 2, 2017
सोने नहीं देती
-
October 27, 2017
ख़ुशी का विभाजन
-
August 2, 2018
फौजी