#दिलीप वसिष्ठसिरमौर(हिमाचल प्रदेश)
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कितनी मिथ्यावादी होती है न माँयें…
बेटा कोमल ममता को ठुकराता है
तो
चुल्हे पर बैठकर आँसुओं का सारा दोष धूँयें को देती है..
छोडकर दुत्कार कर चला गया साथी..
अन्धाधुन्ध द्रान्ती चलाती
घास काटती माँये
आँसुओं का सारा दोष तिनके को देती है।
कितनी मिथ्यावादी होती है माँयें…
मूँह तरेर गयी हो पढी लिखी बहू
तापडतोड़ छाज चलाती दाल बीनती माँयें
आँसुओं का सारा दोष
कंकड को देती है।।।
कितना झूठ बोलती है माँयें।
एक ही रोटी बचने पर
भूख न लगने का नाटक करती है मायें।
बहुत झूठ बोलती है माँयें
बेटों से अपना दर्द छुपाती है माँयें
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