साहित्य की अनेक विधाएं हैं । इन विधाओं में से ही एक है – गद्य लेखन । काव्य को छोड़ दें तो अन्य विधाएं भी गद्य के अंतर्गत ही आती हैं । चाहे वे – एकांकी हों , उपन्यास हों , कहानियां हों , लघुकथाएं हों या सिने स्क्रिप्ट हों । सभी का मूल गद्य ही है । इसलिए कह सकता हूँ कि – साहित्य में गद्य का महत्वपूर्ण योगदान और वर्चस्व है।
जहाँ काव्य में अपनी बात कम शब्दों में कहना होती है वहीं लेख में इसके विस्तार और प्रस्तुतिकरण का पूर्ण अवसर मिलता है । यही विस्तार पाठक को आपसे जोड़ते हुए प्रभावित करता है।
यदि गद्य लेखन की ही बात करें तो यह मेरे मतानुसार हम सब में बचपन से ही परिपक्व होने लगता है । स्कूल में जाते ही हम जो लिखना सीखते हैं वह् भले ही पाठ्यक्रम के अंतर्गत आता हो लेकिन होता गद्य में ही है । फिर धीरे – धीरे हम जो पत्र , निबंध आदि लिखने लगते हैं वह भी गद्य लेखन ही होता है ।
यही लेखन प्रक्रिया मोबाइल पर संदेश लिखने में भी गद्यात्मक ही होती है अर्थात हम सब प्रतिदिन कुछ न कुछ गद्य में लिखते ही हैं ।
लेख लिखने के लिए बस इतना जरूरी होता है कि हम जिस विषय पर लिखना चाह रहे हैं , उसकी हमको जानकारी हो । यह हमारे चिन्तन , मनन और अध्ययन से परिष्कृत होती जाती है । आगे चलकर अपनी रुचि के अनुसार यही लेखन प्रवृत्ति विभिन्न विधाओं में विभक्त हो जाती है । यह विधाएं आपकी कल्पना शक्ति और लेखन पर निर्भर करती है।
मै यहाँ किसी भी विधा को परिभाषित नही करना चाहता । बस इतनी अपेक्षा रखता हूँ और दावे से कह सकता हूँ कि – गद्य लेखन की प्रवृत्ति हमारे अंदर मौजूद रहती है । जरूरत है इसे समझने और अभिव्यक्त करने की ।
तो हो जाइए तैयार .. गद्य लेखन के लिए ।
#देवेंन्द्र सोनी , इटारसी।