सहजता से चल रही रमा और राजन की गृहस्थी में बेखबर फासले दस्तक दे चुके थे । मन के किसी कोने में दोनों ही एक अलगाव सा महसूस कर रहे थे पर इसे व्यक्त करने से बचते थे ।
दस साल की भरी – पूरी खुशहाल जिंदगी में इन फासलों ने दस्तक तब दी जब एक दिन अचानक ही राजन का दोस्त रवि उनके घर आया। फिर तो यह क्रम ही बन गया ।
रवि का रोज रोज घर आना रमा और उसकी युवा होती बेटी को कतई पसन्द नही था पर राजन की ख़ुशी के लिए , न चाहते हुए भी वह रवि के स्वागत- सत्कार में कोई कमी नही करती ।
रवि , बेरोजगार होने के बाबजूद भी खुल कर जीवन जीने का आदी था । घर से धनाड्य होने के कारण फिजूलखर्ची उसके स्वभाव में थी । जब-तब वह कुछ न कुछ उपहार लाता रहता । राजन उसकी इस दरियादिली का कायल था और इस बात से पूरी तरह बेखबर था कि – रवि की दोस्ती उसके गृहस्थ जीवन में बड़ा फासला लेकर आने वाली है ।
रमा आने वाले इस बेखबर फ़ासले को भांप चुकी थी और इशारे ही इशारे में राजन को आगाह भी करती रहती थी पर राजन , रमा की बात को हंसी में उड़ा देता जिससे रमा सदैव ही असहज रहती । यही असहजता उन दोनों के बीच फ़ासले में बदलती जा रही थी ।
समय निकलता गया और राजन , रवि के रंग-ढंग में ढ़लता गया ।
अब देर रात नशे में चूर घर लौटना उसकी दिनचर्या बन गई । रमा उसे समझाती पर राजन को कोई फर्क नही पड़ता था । जान से ज्यादा चाहने वाली युवा बेटी को भी अब वह जब – तब दुत्कार दिया करता , जिससे पिता-पुत्री के रिश्ते में भी फ़ासले बढ़ते जा रहे थे ।
रमा इन हालातों से बहुत अवसाद में रहने लगी । उसका जब -तब बीमार पड़ जाने का भी राजन और रवि पर कोई असर नही हुआ ।
एक दिन माँ – बेटी ने राजन के सामने ही रवि को खूब खरी – खोटी सुनाई और उसके घर आने पर रोक लगा दी । रवि ने इसे अपने अहम का प्रश्न बना लिया और अब बाहर ही राजन को ज्यादा से ज्यादा शराब पिलाने लगा । अपनी जिंदगी और मौत के बीच घटते जा रहे फ़ासले से बेखबर रवि के लीवर ने जबाब दे दिया और अंततः एक दिन वह अपनी दुनिया से रुखसत हो गया ।
रमा सोचती ही रह गई – कैसा था राजन के लिए उसका यह दोस्त , जिसने उन दोनों के बीच वह फासला ला दिया जो अब कभी पाटा नही जा सकता ।
काश ! समय रहते राजन हकीकत समझ लेता तो एक खुशहाल घर यूँ बर्बाद न हुआ होता ।
#देवेंन्द्र सोनी , इटारसी