श्री राम चालीसा

0 0
Read Time3 Minute, 49 Second

रघुकुल वंश शिरोमणी, मनुज राम अवतार।
मर्यादा पुरुषोत्तमा,कहत है कवि विचार।।

जै जै जै प्रभु जय श्रीरामा।
हनुमत सेवक सीता वामा।।1
लछमन भरत शत्रुघन भ्राता।
मां कौशल्या दशरथ ताता।2
चैत शुक्ल नवमी सुखदाई।
दिवस मध्य जन्में रघुराई।।3
नगर अवध में बजी बधाई।
नर नारी गावे हरषाई।।4
दशरथ कौशल्या के प्राणा।
करुणा के निधि जनकल्याणा।।5
श्याम शरीरा नयन विशाला।
कांधे धनुष गले में माला।।6
काक भुसुंड दरश को आते।
शिव भी जिनकी महिमा गाते।।7
विश्वामित्र से शिक्षा पाई।
गुरु वशिष्ठ पूजे रघुराई।।8
बालपने में जग्य रखवाये।
ताड़क बाहू मार गिराये।।9
गौतम नारी तुमने तारी।
चरण धूल की महिमा भारी।।10
मुनि के संग जनकपुर जाई।
शिव का धनुष भंग रघुराई।।11
सीता के संग ब्याह रचाया।
जनक सुनेना के मन भाया।।12
मिथिला नगरी दरशन प्यारे।
नर नारी सब भये सुखारे।।13
मात पिता के वचन निभाये।
राज त्याग कर वन को धाये।।14
केवट गंगा पार कराये।
भक्तों का तुम मान बडाये।।15
पंचवटी में कुटी बनाई।
संगे सीता लक्ष्मण भाई।।16
अनुसुइया के चरण पखारे।
सीता सहित धरम विचारे।।17
मुनि सुतीक्ष्ण के दर्शन पाये।
कबंध आदि को मार गिराये।।18
सीता हरणा विपदा भारी।।
भगत जटायू को भी तारी।।19
मुनि मतंग की शिष्या प्यारी।
भोली शबरी भाव विचारी 20
प्रेम भाव जूठे फल खाये।
भक्ती दीनी मान बढ़ाये।।21
ऊंच नीच का भेद मिटाया।
केवट भिलनी गले लगाया।।22
सेवक हनुमत जंगल पाये।
बांहें फैला गले लगाये।।23
किष्किंधा के राजा बाली।
व्यभिचारी बड़ बलधारी।24
राज तिलक सुग्रीव कराया।
सखा भाव का धर्म निभाया।।25
वानर भालू सेन बनाई।
फिर लंका पे करी चढ़ाई।।26
जब सागर ने मारग रोका ।
चाप चढ़ाई कीना कोपा।।27
सागर दौड़ा दौड़ा आया।
हीरा मोती भेंट चढ़ाया।।28
नल नीला को तुरत बुलाया।
सेतु बांध का भेद बताया।29
सीता खोजी लंका जाई।
सिंधु पार सेना पहुंचाई।।30
मेघनाथ का किया संहारा।
रावण कुंभकरण को मारा।।32
सोने की लंका ठुकराई ।
भक्त विभीषण राज दिलाया।।33
राक्षस मारे भक्तन तारे।
बरसे सुमना जय जयकारे।।34
चौदह वर्ष वनवास बिताये।
पुष्पक बैठ अवध को आये।।35
राज तिलक से जन हरषाये।
सुर नर मुनी आरती गाये।।36
एक राम तुलसी के प्यारे।
दूजा कबिरा ज्ञान उचारे।।37
सरगुण निरगुण एकहि मानो।
इनमें तनिक भेद नहि जानो।।38
पांच अगस्ता तिथि शुभ आई।
मंदिर भव्या नींव खुदाई।।39
जो नित उठ के राम उचारे।
यह चालीसा पार उतारे।। 40

यह चालीसा जो पढ़े, करे राम का ध्यान।
मर्यादित जीवन जिये, मिले सदा सम्मान।।

डा. दशरथ मसानिया
आगर मालवा

matruadmin

Next Post

मित्र

Mon Aug 17 , 2020
सच्चा मित्र वही है जो विपदा में दे साथ अमीर गरीब का भेद न हो एक से हो जज्बात निंदा, ईर्ष्या, द्वेष का न हो नामोनिशान प्रेम, सदभाव, विश्वास का अटूट मिले सौगात ऐसा मित्र तो एक ही है परमात्मा जान हर सुख से नवाज़ता करता ज़रा न अभिमान।#श्रीगोपाल नारसन […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।