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आसमाँ से जो उतर आई धरा पर,
सूर्य की पहली किरण का तेज हो तुम।
बादलों की गोद से जो बून्द सागर में गिरी,
सीप से निकला हुआ मोती हो तुम॥
और जब बहारें झूम के आई चमन में,
गुल भी हो कांटा भी हो,शबनम भी तुम।
विश्व के इतिहास की इस भूमिका में,
माँ भी हो-बेटी भी हो,बेगम भी तुम॥
जिसकी खातिर जमुना पे बना ताजमहल,
वो शाहजहां की उल्फत मुमताज
भी हो तुम।
जिसने केश,महिवाल व फरहाद
को बनाया आशिक,
वो कभी शीरी-कभी सोनी,कभी लैला हो तुम॥
दुनिया को दिए हैं तोहफे जो इंसान बनाकर,
कभी जीजा-कभी पन्ना,तो कभी
मरियम हो तुम।
यहाँ राजा नल व सलीम की थी क्या बिसात,
वो दमयंती व अनारकली की वफ़ा हो तुम॥
इंदिरा ने था इस देश को खुशहाल बनाया,
जागो दीवार पे लटकी हुई तस्वीर
नहीं तुम।
खुशियों को बांटो राह में,जख्मों को समेटो,
कि हर मर्द की किस्मत हो,जागीर नहीं तुम॥
#सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’
परिचय: सुलोचना परमार ‘उत्तरांचली’ का जन्म १२ दिसम्बर १९४६ में हुआ है। आप सेवानिवृत प्रधानाचार्या हैं जिनकी उपलब्धि में वर्ष २००६ में राष्ट्रीय सम्मान,राज्य स्तर पर सांस्कृतिक सम्मान,महिमा साहित्य रत्न २०१६ सहित साहित्य भूषण सम्मान,विभिन्न कैसेट्स में गीत रिकॉर्ड होना है। आपकी रचनाएं विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी व साक्षात्कार के रुप में प्रकाशित हुई हैं तो चैनल व आकाशवाणी से भी काव्य पाठ,वार्ता व साक्षात्कार प्रसारित हुए हैं। हिंदी एवं गढ़वाली में ६ काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। साथ ही कवि सम्मेलनों में राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर शामिल होती रहती हैं।
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