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निर्देशक विक्रम भट्ट ने यह फिल्म बनाई है,जिसमें कलाकार-ज़रीन खान,करण कुंद्रा हैंl 1920 श्रृंखला की चौथी फ़िल्म
न तो डराने में कामयाब रही है,न ही दर्शकों को बाँधने में सफल हुई हैl विक्रम भट्ट की `1920` श्रृंखला की यह चौथी फ़िल्म `1921` हैl पहली फ़िल्म `1920` सन २००८ में विक्रम निर्देशित आई थी,दूसरी फिल्म `1920 ईविल रिटर्न्स` में भूषण पटेल का निर्देशन था,तीसरी फिल्म `1920 लंदन थी` जिसे टीनू सुरेश देसाई ने निर्देशन दिया थाl इन दस साल में चौथी फ़िल्म `1921` शुक्रवार को आई है,जिसकी पटकथा और निर्देशन की बागडोर पुनः विक्रम ने सम्भाली हैl
इसकी कहानी के अनुसार आयुष (करण कुंद्रा) संगीत सीखने इंग्लैंड जाते हैंl जहां वह रहते हैं,वहां के घर के कुछ ऐसे दरवाजे खोल देते हैं कि,बुरी आत्माओं ओर साए से मुलाकात हो जाती हैl इन बुरी आत्माओं से लड़ने के लिए साथ देने आती है रोज़ (ज़रीन खान)l फिर शुरू होता है बचने-बचाने का खेलl रोज तथा आयुष का प्यार होना भी कुछ नयापन नहीं लिए हुआ थाl भूतों में पहले भागने-दौड़ने से शुरूआत होती है,और फिर वह पीछे खड़ा मिलता है,थोड़ा हास्यास्पद लगता हैl
हॉलीवुड फिल्मों `इंसिडियस,लाइट आउट,कंज्यूरिंग 2,गेम ऑफ थ्रोन्स` से जस-के-तस सीन नकल कर लिए गए हैंl चूँकि,फ़िल्म का परिदृश्य इंग्लैंड है,तो एक किरदार का ईसाई होना लाजमी थाl पूरी फिल्म की समय सीमा लम्बी १५५ मिनट होना भी खटकता हैl
बात संगीत की करें तो फ़िल्म के गाने अच्छे बन गए हैंl संगीतकार हरीश सगाने ने शायर शकील आज़मी के गानों को माकूल धुन के साथ पिरोते हुए कर्णप्रिय बनाने की कोशिश की है, परन्तु गाने सुनते वक्त कुछ नयापन नहीं लगा हैl `सुन ले ज़रा` गाना `माया` फ़िल्म के गाने की याद ताज़ा करता हैl हॉरर फिल्म का सहायक संगीत ही होता है,जो फ़िल्म को ऊंचाई पर ले जाने में मदद करता हैl इस फ़िल्म में पकड़ न बन पाने के कारण वह भी हाथ से छूटता लगा हैl स्थल इंग्लैंड के यॉर्कशायर हैं जो खूबसूरत और लुभावनी लगे हैंl सिनेमेटोग्राफी में प्रकाश कट्टी का काम और फ्रेम खूबसूरत बने हैंl इधर बेकग्राउंड संगीत कामचलाऊ लगा हैl
कलाकारों में करण कुंद्रा एवं ज़रीन को अभिनय में लम्बा संघर्ष करना पड़ता दिख रहा हैl दोनों कई जगहों पर शो-पीस लगते हैंl
भावनात्मक दृश्यों में न तो भाव और न ही दर्शक समाहित हो पाते हैंl
ज़रीन के अभिनय में न तो ताजगी है,और न ही स्फूर्ति दिखती हैl ज़रीन खान को न तो अभिनय की समझ है,न कर पाती हैl करण तो टीवी पर ही बेहतर है,फिर विक्रम ने क्या सोचकर जुआ खेल लिया,वही जानेंl भूतिया दृश्य माकूल और अच्छे बने हैं,पर नकल ने दम तोड़ दिया हैl हॉरर फिल्मों में सम्पादन का अपना अहम मुकाम होता है,जो कुलदीप मेहन करते,अगर ये फ़िल्म अच्छी होती तो ?
इसमें वीऍफ़एक्स तकनीक का भी अच्छा इस्तेमाल किया जा सकता था,लेकिन नहीं कियाl फ़िल्म की लंबाई भी छोटी की जा सकती थी,क्योंकि यह पूरी फ़िल्म को नीरस बनाती हैl फ़िल्म के सामने सैफ अभिनीत `कालाकांडी`(निर्देशक अक्षत वर्मा-देलीबेली) और `मुक्केबाज`(अनुराग कश्यप) भी प्रदर्शित हुई है,
इसलिए उम्मीद करता हूँ कि इससे बेहतर होगीl कुल मिलाकर `1921` को १.५ सितारे देना ही ठीक हैl
#इदरीस खत्री
परिचय : इदरीस खत्री इंदौर के अभिनय जगत में 1993 से सतत रंगकर्म में सक्रिय हैं इसलिए किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं| इनका परिचय यही है कि,इन्होंने लगभग 130 नाटक और 1000 से ज्यादा शो में काम किया है। 11 बार राष्ट्रीय प्रतिनिधित्व नाट्य निर्देशक के रूप में लगभग 35 कार्यशालाएं,10 लघु फिल्म और 3 हिन्दी फीचर फिल्म भी इनके खाते में है। आपने एलएलएम सहित एमबीए भी किया है। इंदौर में ही रहकर अभिनय प्रशिक्षण देते हैं। 10 साल से नेपथ्य नाट्य समूह में मुम्बई,गोवा और इंदौर में अभिनय अकादमी में लगातार अभिनय प्रशिक्षण दे रहे श्री खत्री धारावाहिकों और फिल्म लेखन में सतत कार्यरत हैं।