हिन्दी भाषा से ही अपना हिन्दुस्तान

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ranu dhanoriya
आज बदलते हालातों पर अंकुश कब लगाएंगे,
नहीं कोई फौलादी तो महल सरीके गिर जाएंगे।
 
 
तुम आज विदेशी बन बैठे,हिन्दी बड़ी बताते हो,
भूल गए आजादी क्या,गुलामी भाषा अपनाते हो।
 
 
आज बड़े हैं ठाठ तुम्हारे तो,इंग्लिश की पुस्तक है,
तुम हिंदी न बोल पाते हो,ऐसी बेढंग की फितरत है।
 
 
मत भूल,पहली बार बोलकर तूने हाथ बढ़ाया था,
‘मां’ शब्द का नाम तुझे हिंदी में ही सिखलाया था।
 
 
जुबां काट दो कैंची से,मारने से काहे नफरत है,
जब अपनी ‘मातृभाषा’ को कहने से तुम्हें दिक्कत है।
 
 
ये बात नहीं मानी और अंग्रेजी का रौब बताओगे,
गर सभ्यताओं की कब्र खुदी तो मिट्टी में मिल जाओगे।
 
 
एसएमएस का दौर चला,अब कागज वाली न चिट्ठी है,
हिन्दी मातृभाषा से ही हिन्दुस्तानी मिट्टी है।
 
 
आजाद हिंद,जो भाषा से अंग्रेजों का गुलाम बना है,
मत भूल हिंदी भाषा से ही अपना हिन्दुस्तान बना है।
 
 
क्यों `मातृभाषा` से ज्यादा इंग्लिश को बड़ा बताते हैं,
जो मां-बाप अपने बच्चों को अंग्रेजी शिक्षा दिलाते हैं।
 
 
छोड़ो बाहर की संस्कृति,अब और मोल न तोलेंगे,
ये समझो इंग्लिश से ज्यादा हम सब हिंदी बोलेंगे।
 
 
तू भले विदेशों में जाकर इंग्लिश बड़ी बता देना,
अब एक बार तू मुझको बस भारत का अर्थ बता देना।
 
 
कुछ पढ़े-लिखे हैं लोग,फिर भी शिक्षा रास नहीं आती,
क्यों अपने देश के नागरिकों को हिंदी में बात नहीं आती।
 
 
पुकार रही है मातृभाषा,धरती भी थर-थर कांपी है,
जो बच्चों के बस्तों में अब हिंदी की न कॉपी हैl 
 
 
भाषा खो बैठी अंधकार में,दीपक कौन जलाएगा,
इंग्लिश शिक्षक बन बैठे,अब हिंदी कौन पढ़ाएगाl 
 
 
गर आज बदलते अंग्रेजी गानों पर बीन बजाओगे,
मैं पूछ रही क्या इंग्लिश में ही राष्ट्रगान को गाओगेl 
 
 
जो अंग्रेजी भाषा का तुझको ये स्वाभिमान बना है,
मत भूल हिंदी भाषा से ही अपना हिंदुस्तान बना हैl 
 
 
आज यहां पर सभ्यता के नाम पर क्या काम हो रहे,
माता और पिताजी से मॉम-डैड से नाम हो रहेl 
 
 
नहीं कोई अब संस्कृति,न पहले जैसी बात रही,
नही रहे हिंदी के भजन और न ढोलक वाली रात रहीl 
 
 
अब आज फिल्म के गानों में इंग्लिश वाला कचरा है,
पलभर सुकून नहीं मिलता,ऐसा बेढंग का नगमा हैl 
 
 
आज यहां हर महफ़िल में इंग्लिशवाला बाग सजा है,
पुस्तक सारी गुम हो गई,बस `मातृभाषा` नाम बचा हैl 
 
 
सब्र नहीं करना होगा,वो दिन जल्दी ही आएगा,
गुलामी भाषा से हिंदुस्तान सारा विदेश बन जाएगाl 
 
 
भले विदेशी कोई हो,सौ सादर और सत्कार हो,
मगर यहां की भूमि में हिंदी वार्ता अनिवार्य होl 
 
 
विदेश में अपनी भाषा हो,ऐसा करतब कर जाएंगे,
हिंदी इतनी प्रचलित कर दो,विदेशी भी सीखने आएंगेl 
 
 
जब अपनी भाषा हिन्दी है,तू क्यों इंग्लिशतान बना है,
मत भूल हिन्दी भाषा से ही अपना हिन्दुस्तान बना है॥
#रानू धनौरिया
परिचय : रानू धनौरिया की पहचान युवा कवियित्री की बन रही है। १९९७ में जन्मीं रानू का जन्मस्थान-नरसिंहपुर (राज्य-मध्यप्रदेश)है। इसी शहर-नरसिंहपुर में रहने वाली रानू ने जी.एन.एम. और बी.ए. की शिक्षा प्राप्त की है। आपका कार्यक्षेत्र-नरसिंहपुर है तो सामाजिक क्षेत्र में राष्ट्रीय सेवा योजना से जुड़ी हुई है। आपका लेखन वीर और ओज रस में हिन्दी में ही जारी है। आपकॊ नवोदित कवियित्री का सम्मान मिला है। लेखन का उद्देश्य- साहित्य में रुचि है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।