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पास मेरे प्रेम धन है,शेष मैं निर्धन बहुत हूँ…
सोच लो अर्धांगिनी बनकर,तुम्हें क्या-क्या मिलेगा ?
रेशमी साड़ी न होगी,कंचनी गहने न होंगें,
और शायद दे न पाऊँ मोतियों वाली अँगूठी…
हो महल कोई विभासित हे प्रिये! निश्चित नहीं है,
अब बँधाना चाहता तुमको नहीं मैं आस झूठी..।
तुम मिले मुझको अगर तो मैं यही तुमसे कहूँगा,
एक रेगिस्तान ही भागीरथी से जा मिलेगा…
सोच लो अर्धांगिनी बनकर,तुम्हें क्या-क्या मिलेगा ?
तुम अगर ये चाहती हो प्रेम के मोती लुटाऊँ,
है सहज मेरे लिए केवल तुम्हें अपना बनाना..
प्राथमिकता यदि तुम्हारी सांसारिक वस्तुएँ हैं,
फिर नहीं कुछ पास मेरे रिक्त है सारा ख़जाना…।
ख़्वाहिशें पूरी न होकर अश्रु में बहने लगेंगी,
भेंट सुख से हो न हो ये दुःख बहुत ज्यादा मिलेगा…
सोच लो अर्धांगिनी बनकर,तुम्हें क्या-क्या मिलेगा ???
#इन्द्रपाल सिंह
परिचय : इन्द्रपाल सिंह पिता मेम्बर सिंह दिगरौता(आगरा,उत्तर प्रदेश) में निवास करते हैं। 1992 में जन्मे श्री सिंह ने परास्नातक की शिक्षा पाई है। अब तक प्रकाशित पुस्तकों में ‘शब्दों के रंग’ और ‘सत्यम प्रभात( साझा काव्य संग्रह)’ प्रमुख हैं।म.प्र. में आप पुलिस विभाग में हैं।
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