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मर्यादा की सीताओं का,करते रोज हरण।
राम नाम का चोला धारे,घूम रहे रावण॥
उन्मादी वैचारिकता के,साथ खडे़ दिखते।
नीति नियंता उन्मादों की,कथा स्वयं लिखते।
भाईचारे की धरती पर,छेड़ रहे हैं रण…।
राम नाम का चोला धारे, घूम रहे रावण…॥
धर्म नाम पर भाईचारे,के आँगन बाँटे।
चंदन वन को आग लगाकर,बो डाले काँटे॥
नोच दिए सब मानवता के,बाकी थे जो तृण…।
राम नाम का चोला धारे,घूम रहे रावण…॥
सूरज अँधियारे का साथी,बन तम फैलाए।
क्या हो सोचो बाड़ खेत को,अगर स्वयं खाए॥
ये सब घटित हुआ क्यूँ इसका,सोचो तो कारण…।
राम नाम का चोला धारे,घूम रहे रावण…॥
नफ़रत बोकर कुर्सी उगती,देखी है हमने।
धर्मों की भी मंडी लगती,देखी है हमने॥
उपर उठ पाना मुश्किल है,इतना हुआ क्षरण…।
राम नाम का चोला धारे,घूम रहे रावण…॥
#सतीश बंसल
परिचय : सतीश बंसल देहरादून (उत्तराखंड) से हैं। आपकी जन्म तिथि २ सितम्बर १९६८ है।प्रकाशित पुस्तकों में ‘गुनगुनाने लगीं खामोशियाँ (कविता संग्रह)’,’कवि नहीं हूँ मैं(क.सं.)’,’चलो गुनगुनाएं (गीत संग्रह)’ तथा ‘संस्कार के दीप( दोहा संग्रह)’आदि हैं। विभिन्न विधाओं में ७ पुस्तकें प्रकाशन प्रक्रिया में हैं। आपको साहित्य सागर सम्मान २०१६ सहारनपुर तथा रचनाकार सम्मान २०१५ आदि मिले हैं। देहरादून के पंडितवाडी में रहने वाले श्री बंसल की शिक्षा स्नातक है। निजी संस्थान में आप प्रबंधक के रुप में कार्यरत हैं।
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