Read Time3 Minute, 14 Second
कुछ प्रीत जगानी थी मुझको,
कुछ रीत निभानी थी मुझको।
कुछ ऐसे गीत सुनाने थे,
जो महफिल को भी भाने थे॥
कुछ सूरज की अरुणाई के,
कुछ तरुणों की तरुणाई के।
कुछ देश धरा की माटी के,
कुछ भारत की परिपाटी के।
कुछ ऐसे नगमे गाने थे’
जो महफिल को भी भाने थे॥
कुछ अपने वीर जवानों के,
कुछ धरतीपुत्र किसानों के।
कुछ आतंकी परिभाषा के,
कुछ टूट गई उस आशा के।
कुछ ऐसे लगे निशाने थे,
जो महफिल को भी भाने थे॥
कुछ बेटी खोई-खोई-सी,
कुछ ममता रोई-रोई-सी।
कुछ दर्द दिखा था बेटों में,
कुछ दंभ भरे आखेटों में।
कुछ ऐसे ताने-बाने थे,
जो महफिल को भी भाने थे॥
कुछ सत्ता की मजबूरी थी,
कुछ जनता से भी दूरी थी।
कुछ भूले-भटके नेता को,
कुछ प्राणी और प्रणेता को।
कुछ ऐसे फर्ज़ निभाने थे,
जो महफिल को भी भाने थे॥
कुछ स्याही बिखरी जाती थी,
कुछ कलम भी निखरी जाती थी।
कुछ गीत-ग़ज़ल की सज्जा थी,
कुछ महफिल की भी लज्जा थी।
कुछ लिखने वही तराने थे,
जो महफिल को भी भाने थे॥
#ओम अग्रवाल ‘बबुआ’
परिचय: ओमप्रकाश अग्रवाल का साहित्यिक उपनाम ‘बबुआ’ है। मूल तो राजस्थान का झूंझनू जिला और मारवाड़ी वैश्य हैं,परन्तु लगभग ७० वर्षों पूर्व परिवार यू़.पी. के प्रतापगढ़ जिले में आकर बस गया था। आपका जन्म १९६२ में प्रतापगढ़ में और शिक्षा दीक्षा-बी.कॉम. भी वहीं हुई। वर्तमान में मुंबई में स्थाई रूप से सपरिवार निवासरत हैं। संस्कार,परंपरा,नैतिक और मानवीय मूल्यों के प्रति सजग व आस्थावान तथा देश धरा से अपने प्राणों से ज्यादा प्यार है। ४० वर्षों से लिख रहे हैं। लगभग सभी विधाओं(गीत,ग़ज़ल,दोहा,चौपाई, छंद आदि)में लिखते हैं,परन्तु काव्य सृजन के साहित्यिक व्याकरण की न कभी औपचारिक शिक्षा ली,न ही मात्रा विधान आदि का तकनीकी ज्ञान है।
काव्य आपका शौक है,पेशा नहीं,इसलिए यदा-कदा ही कवि मित्रों के विशेष अनुरोध पर मंचों पर जाते हैं। लगभग २००० से अधिक रचनाएं लिखी होंगी,जिसमें से लगभग ७०० के करीब का शीघ्र ही पाँच खण्डों मे प्रकाशन होगा। स्थानीय स्तर पर ढेरों बार सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे हैं।
आजीविका की दृष्टि से बैंगलोर की निजी बड़ी कम्पनी में विपणन प्रबंधक (वरिष्ठ) के पद पर कार्यरत हैं।
Post Views:
391