`साहब` किसी भी प्रजाति का हो,साहब ही होता है। साहब की कई प्रजातियां होती हैं। साहब को साहब मानने का एक ही आधार है। साहब का एक पी.ए.(निज सहायक) हो। बिना पी.ए. साहब नहीं होता,और साहब के बिना पी.ए. नहीं हो सकटा है। इसमें एक फजीहत है। जिस तरह अस्पतालों में नर्स के साथ-साथ पुरुष नर्स होती है,वैसे ही साहब के साथ भी पुरुष पी.ए. हो सकता है। ये साहब का दुर्भाग्य है-साहब के साथ पुरुष पी.ए. हो या पुरुष नर्स हो। साहब का मन,कार्य करने की क्षमता और जनसम्पर्क तथा साहब का विनम्र होना साहब के पी.ए. के व्यक्तित्व पर निर्भर करता है।
पी.ए.की कल्पना शुरू होती है-एक सुकोमल,चंद्रबदन, कमल नयन,हिरणीय चंचलता,मृदुभाषी,मितभाषी, आंग्लभाषा ज्ञान से परिपूर्ण,कम अधोवस्त्राणी,मुख लिप-लिप स्टिक से कमनीयता के साथ सज्जित,बाल कोमल,शैम्पू युक्त,सुगंधित डिओ से सराबोर,साहित्य की नायिका के समान उच्चकोटि कुर्सी पर विराजमान। सामने लेपटाप,हाथ में मोबाइल,कान में ठुस्सू,गले में नगजड़ित नागमाला। आंखों में मूर्ख बनाने की चपलता,उसे ही पी.ए. की परिभाषा से सुशोभित माना जाता है।
साहब की पी.ए. धर्मनिरपेक्ष होती है,ईश्वर की भांति सबको एक नज़र से देखने वाली। लक्ष्मी की तरह हर किसी पर दयावान नहीं,सरस्वती ज्ञान की तरह हर कोई प्राप्त नहीं कर सकता। पी.ए. तक पहुंचने के लिए स्टूल पर बैठा आदमी और साहब तक पहुंचने के लिए पी.ए. जरूरी है।
पी.ए.यानी ऐसा जिन्दा कम्प्यूटर,जिसमें साहब की घर की बाहर की जानकारी भरी होती है। यहां बटन दबाने की आवश्यकता नहीं है,बस एक सवाल साहब कहां हैं,कैसे हैं, कब मिलेंगें,कैसे मिलेंगे या नहीं मिलेंगे। ये सब बातें तय करती हैं आपके खुद के हालत पर। आप क्या हैं,बाबू हैं, अफसर हैं,नेता हैं,ठेकेदार हैं या फिर साहब की पत्नी के रिश्तेदार हैं।
सत्ता पर साहब और सत्ता की धुरी पी.ए. के हाथ में। साहब जितना विश्वास पी.ए. पर करते हैं,उतना पत्नी पर नहीं करते। कहावत तो बहुत बुरी बना रखी है,साहब की दूसरी बीबी के नाम से पी.ए. को जाना जाता है। घर में खैरियत बीबी के हाथ है और कार्यालय में इज्जत पी.ए. के पास। साहब अच्छे हैं या बुरे,यह तो पी.ए. से मालूम पड़ता है। साहब का मन(मूड) कैसा है,मन बनाना है या मन खराब करना है,पी.ए. जानती है।
साहब पी.ए. का भरोसा आंख बंद करके करता है। यदि आंख बंद नहीं करता,तो आंखें बंद कर दी जाती हैं। जिस प्रकार आदमी के मरने के बाद पति की सम्पत्ति पर पत्नी का अधिकार होता है,वैसे ही साहब की अनुपस्थिति में कार्यालय की सर्वेसर्वा पी.ए. ही होता है। हस्ताक्षर साहब के आदेश पी.ए. का।
आपका काम होना है या नहीं होना,यह साहब नहीं, यह तय होता है पी.ए. के साथ आपके संबंध कैसे हैं। साहब को आप दिवाली उपहार देने जाएंगे तो पहले आपको पी.ए. के कमरे से गुजरना होगा। साहब तक जाने का हर रास्ता पी.ए. के कमरे से होकर निकलता है। काम करने के पहले साहब को इस निज सहायक की राय सबसे महत्वपूर्ण लगती है।
जिम्बाबवे के तख्ता पलट के पीछे मुगाबे की पी.ए. का होना है। इसलिए साहब बनो,बॉस बनो,लेकिन पी.ए. को बीबी मत बनाओ। आधी जानकारी पी.ए. के रूप में और आधी जानकारी बीबी के रूप में,आपके पास अपना कुछ भी गोपनीय नहीं। आपके सारे राज बाहर और आप सत्ता से,घर से बाहर। आप जहां सबकी नजर में,वहीं अब नजरबंद हैं। इसलिए अब नया मुहावरा चल पड़ा है-पी.ए.से भगवान बचाए।
राही'
परिचय : सुनील जैन `राही` का जन्म स्थान पाढ़म (जिला-मैनपुरी,फिरोजाबाद ) है| आप हिन्दी,मराठी,गुजराती (कार्यसाधक ज्ञान) भाषा जानते हैंl आपने बी.कामॅ. की शिक्षा मध्यप्रदेश के खरगोन से तथा एम.ए.(हिन्दी)मुंबई विश्वविद्यालय) से करने के साथ ही बीटीसी भी किया हैl पालम गांव(नई दिल्ली) निवासी श्री जैन के प्रकाशन देखें तो,व्यंग्य संग्रह-झम्मन सरकार,व्यंग्य चालीसा सहित सम्पादन भी आपके नाम हैl कुछ रचनाएं अभी प्रकाशन में हैं तो कई दैनिक समाचार पत्रों में आपकी लेखनी का प्रकाशन होने के साथ ही आकाशवाणी(मुंबई-दिल्ली)से कविताओं का सीधा और दूरदर्शन से भी कविताओं का प्रसारण हुआ हैl आपने बाबा साहेब आंबेडकर के मराठी भाषणों का हिन्दी अनुवाद भी किया हैl मराठी के दो धारावाहिकों सहित 12 आलेखों का अनुवाद भी कर चुके हैंl रेडियो सहित विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में 45 से अधिक पुस्तकों की समीक्षाएं प्रसारित-प्रकाशित हो चुकी हैं। आप मुंबई विश्वद्यालय में नामी रचनाओं पर पर्चा पठन भी कर चुके हैंl कई अखबार में नियमित व्यंग्य लेखन जारी हैl